अउर तूँ पंचे इआ संसार के बुरे मनइन कि नाईं न बना; काहेकि परमातिमा तोंहरे मन काहीं नबा कइ दिहिन हीं, एसे तोंहार पंचन के चाल-चलन बदलत जाँइ चाही, जउने तूँ पंचे अपने अनुभव से इआ जान लेबा करा, कि परमातिमा तोंहरे जीबन से का चाहत हें, अउर उनहीं का नीक लागत हय, अउर उनखर पूरी इच्छा का ही।
तऊ ऊँ पंचे तोंहरे मान-सम्मान समेत, पबित्र चाल-चलन काहीं देखिके, अपने-अपने मेहेरिआ के चाल-चलन के द्वारा परमातिमा के तरफ खिंचे चले आमँय। उनहीं पंचन काहीं प्रभू के बारे माहीं बेर-बेर बतामँइ के जरूरत न परी।