अउर परमातिमा के कबहूँ न बदलँइ बाली ऊँ दुइठे बातँय, अरथात “कसम” अउर “वादा” के द्वारा हमहीं पंचन काहीं इआ पता चलत हय, कि “परमातिमा कबहूँ झूँठ साबित होइन नहीं सकँय।” एसे हमार पंचन के साहस अउर मजबूत होइ जात हय, अउर हम पंचे जउन उनखे सरन माहीं दउड़े चले आएन हँय, कि उआ आसा काहीं पाई, जउन आँगे धरी हय।