मैं समौन पतरस जो ईसु मसी को सेवक और भेजो भओ चेला हौं, जौ चिट्ठी मैं उन लोगौ के नाम लिख रओ हौं जो हमरे हाँई हमरे परमेसर और मुक्ति दैनै बारे ईसु मसी की धारमिकता के दुआरा सै बिसवास पावै हैं।
का मैं आदमी की ओर सै अपनी बड़ाई चाँहौ हौं या परमेसर की? का मैं आदमिऔ कै खुस कन्नै के ताँई लगो रैहबौं हौं? अगर मैं अब तक लोगौ कै खुस करतो रैहतो तौ मैं मसी को सेवक ना होतो।
“बाद मै बौ आओ जिसकै एक हजार असरपी मिली हीं। बानै कैई, ‘मालिक, मैंकै मालूम हो कै तू कठोर आदमी है। तू बहाँ काटै है जहाँ तैनै बोओ ना है, और जहाँ तैनै कोई बीज ना डारो बहाँ फसल बटोरै है।
पर उसके सैहर के रैहनै बारे लोग उस्सै बैर रक्खै हे, इसताँई उनौनै उसके पीछे कुछ आदमिऔ सै जौ सन्देसो भिजबाओ कै, ‘हम ना चाँहै हैं, कै जौ आदमी हमरे ऊपर राज करै।’