“पर इब्राहिम नै कैई, ‘हे मेरे लौंड़ा, तू अपनी जिन्दगी मै अच्छी-अच्छी चीज ले चुको है, जबकि लाजर कै बुरी चीजई मिली हैं, पर अब हिंया बाकै सान्ति मिल रई है, और तू तड़प रओ है।
जितनी उसनै अपनी बड़ाई बतकाँई और सुख और खुसी मनाई है, उतनोई उसकै दरद और दुख देईओ, कैसेकै बौ अपने मन मै कैबै है, मैं रानी के जैसी सिंगासन मै बैठी हौं, मैं राँड़ ना हौं और कबी दुखी ना हौंगो।
जे लोग तुमरी दाबतौं मै आकै बेसरमौ के हाँई खावै-पीवै हैं और तुमरे ताँई जे लुके भए खतरा हैं और जे ऐंसे भेड़ चुंगानै बारे हैं जो अपनेई बारे मै सोचै हैं, बे बिना बरसे बादर के हाँई हैं, जिनकै बियार उड़ा ले जावै है, बे पतझड़ बारे बिना फल के पेड़ हैं, जो दो बार मर चुके हैं और जड़ सै उखड़ गए हैं।
जो बुराई जे दूसरौं के संग करै हैं, तौ बैसोई इनौई के संग बुरो होगो; उनकै दिन के उज्जेरे मै सरीर के मजे के ताँई गन्दो काम कन्नो अच्छो लगै है, जे लोग कलंक और दोस हैं। जब बी बे दाबतौं मै रोटी खानै के ताँई तुमरे संग इखट्टे होवै हैं, तौ ऐंसो बरताब करै हैं जो आदमी के ताँई सरम की बात है।
हम बैसेई रैहऐ जैसे दिन के टैम मै रैहबैं हैं। और दाबतौं मै खाकै पीकै धुत्त ना होओ, बईयरौं के संग गलत काम ना करौ, भोग-विलास मै ना पड़ौ, लड़ाई, और ना किसी सै जरन रक्खौ।