पर हम मट्टी के बा बरतन के हाँई हैं जिसमै जौ खजानो रक्खो भओ है। जिस्सै जौ साप-साप हो जाऐ कै बौ सकति जो कबी खतम ना होवै है, हमरी ओर सै ना पर बौ परमेसर की ओर सै है।
तुम अपने सरीर के अंगौ कै अधरम के औजारौं जैसे पाप के हवाले मत करौ, बलकन मरे भएऔं मै सै जी उठनै बारौं के जैसे परमेसर के हवाले कर दो। और अपने सरीर के अंगौ कै धरम के औजारौं के रूप मै परमेसर के हवाले कर दो।
मैं तुमसै दूर होते भए बी तुमकै जे सब बात लिख रओ हौं कै जब मैं तुमरे धौंरे आंगो तौ मैंकै परभु के देए भए हक सै तुमरे संग कठोर बरताब कन्नो ना पड़ै। कैसेकै जौ हक मैंकै परभु नै देओ है बौ बिगाड़नै के ताँई ना पर तुमकै बढ़ानै के ताँई देओ है।
ऐंसो कौन आदमी है जो अपनोई खरचा करकै सैना की सेवा करै? और ऐंसो कौन होगो जो अंगूर को बगीचा लगाकै बी बाको फल ना खाऐ? और ऐंसो कौन है जो अपनी भेड़ौ की देखरेख करै, पर बाको दूद ना पिऐ?
कैसेकै अगर मैं जा हक के बारे मै घमंड करौं जो परभु नै तुमरे नास के ताँई ना पर तुमरे आत्मिक रूप कै बढ़ानै के ताँई दओ है, तौ बाके ताँई मैं सरमिन्दा ना हौंगो।