पर हम मट्टी के बा बरतन के हाँई हैं जिसमै जौ खजानो रक्खो भओ है। जिस्सै जौ साप-साप हो जाऐ कै बौ सकति जो कबी खतम ना होवै है, हमरी ओर सै ना पर बौ परमेसर की ओर सै है।
पर परभु नै मैंसै कैई कै, “मेरी किरपा तेरे ऊपर भौत है कैसेकै कमजोरिऔं मैई मेरी सकति सबसै जादा है।” इसताँई मैं अपनी कमजोरिऔं के ऊपर खुसी के संग घमंड करौ हौं कै मसी की सकति मेरे भीतर है।
कैसेकै मसी नै मैं जल संस्कार दैनै के ताँई ना, पर अच्छी खबर को परचार कन्नै के ताँई भेजो हौं, और जौ अच्छी खबर मैं चालाँकी बारी बातौं सै ना सुनावौं हौं, जिस्सै कै मसी की कुरूस की तागत बेकार ठैरै।
बहाँ थूआतीरा सैहर की लुदीया नाम की एक परमेसर की भक्तन ही बौ बैंगनी रंग के खास कीमती लत्ता बेचै ही और परभु नै बाको दिल खोल दओ और बौ पौलुस की बातौं कै धियान सै सुनल लगी।