“तभई मैं तुमसे कहथौं: जिंदो रहन के ताहीं, चिंता मत करीये कि हम खांगे, और का पीमंगे, और ना अपने सरीर के ताहीं कि का पहनंगे, सबन के बाद, का ज्यान रोटी से जद्धे जरूरी नाय है? और सरीर लत्तन से बढ़कै नाय है?
और एक दुसरे के संग इखट्टो होनो नाय छोड़ैं, जैसे कि कितनेन कि आदत है, पर एक दुसरे कै समझात रहमैं; और जैसी-जैसी बौ दिन कै झोने आत देखैं, बैसिये-बैसिये औरौ जाधा जौ करे करौ।
जौ बजह से अगर खानु मेरे भईय्या और बहेनिया कै ठोकर खबाबै, तौ मैं कहु कैसियौ रीति से सिकार नाय खांगो, ऐसो ना होबै कि मैं अपने भईय्या के ताहीं ठोकर को बजह बनौ।
बे जौ पता लगान की कोसिस करीं कि समय कब होगो और कैसे आगो। जौ बौ समय रहै, जामैं मसीह की आत्मा भविस्यवाँड़ी करत रहै, मसीह कै बे कस्टन को अनुमान लगान के ताहीं, जिनकै झेलने होगो और महिमा कै अपनाने होगो।
अपनी सोच मैं इत्ती आसानी से भ्रमित मन हुइयो या जौ दाबा से परेसान होनो कि प्रभु को दिन आए गौ है। सायद जौ सोचो जाबै कि हम भविस्यवाँड़ी या आत्मा मैं उपदेस देन पोती जौ कहे रहैं, या कि हम जाकै एक चिट्ठी मैं लिखे रहैं।
“तुम चहाचीते रहबौ! अपने आपकै भौत जाधा दावत और पीन के सामान संग और जौ दुनिया की बात कै मन मैं चिंता के संग कब्जा मत करन दियौ, या बौ दिन अनकाचीति तुमकै पकड़ लेबै।