21 हम ओकरा पस्चाताप करैले समय देलियै महज उ आपन बेबिचारसे पस्चाताप करैले इन्कार करल्कै।
कोइ कोइ यि बिचार करैछै कि परमपरभु आपन करल परतिग्या पुरा करैले देर करैछै, महज कोइ नास नै हेबे बरु सबलोक आपन-आपन पापसे पस्चाताप करे कैहके उ धिरजसे असियालछै।
तब उसबके घाँह-घौसके दुखसे स्वरगमे रहैबला परमेस्वरके सरापल्कै महज आपन करल पापसे पस्चताप करैले नै मानल्कै।
लोकसब सुरुजके टहटह रौदसे डहलै आ यि दुख-कस्टसे उसब परमेस्वरके नामके धिक्कारल्कै महज उसब आपन पापसे पस्चताप करैले आ ओकरा महिमा दैले इन्कार करल्कै।
परभु लोकसबके पापसबसे मुक्ती पाबे कैहके मौका दैले चाहैछै, ओहैसे उ कतहेक धिरजी चियै कैहके धियान दहै। अपनासबके पिरिय भाइ पावल सेहो परमेस्वरसे पाबने बुइधसे एह्या बातसब तोरासबके लिखने छेलौ।
उ आत्मासब पहिने परमेस्वरके आग्यापालन नै करल्कै जहिया नोआ पानी जहाद बनाबै छेलै। उसब आपन पापसे फिरतै कि कैहके धिरजकेसाथ परमेस्वर असियाल छेलै। जहादमे कमे लोक, अरथात आठ गोरे मातरे जल परलयसे बचल छेलै।
तहिनङे लोकसबसङे कनङ बेबहार करबै कहैबला बात त परमेस्वरके आपन इक्छाके बात चियै। आपन रिस आ सक्ती देखाइके ओकर आपन इक्छाके बात हैतोपरभी, उ नासके लेल तैयार करल लोकसबके सङे एकदम धिरज कैरके रहलै।