22 लोभ, दुस्मनी, छल-कपट, निरलज, रिस-डाह, निन्दा, घमन्ड, मुरखता निक्लैछै।
कि आपन इक्छा लागल लोकके आपने पैसा-कौरी दैले हमरा अधिकार नै छै? हम ओकरा दया करलियै त तोरा कथिले डाह हैछौ’?”
तहिनङे जबानसब, बुढ लोकसबके अधिनमे रह। तुसब नम्र भ्याके एक दोसरके सेबा कर। कथिलेकी पबितर धरमसास्तरमे लिखल छै कि, “परमेस्वर घमन्डी लोकसबके बिरोध करैछै, महज नम्र लोकसबके अनुगरह करैछै।”
तुसब असल काम कैरके मुरुख लोकसबके मुरखाहा बात बोलैबलासबके मुह बन्द कर कैहके परमेस्वरके इक्छाछै।
परमेस्वरके सत ग्यानके बिरोधमे उठैबला बहस आ घमन्डसे भरल बाधाके हमसब नास करैचियै आ सब खराब बिचारके खिरिस्टके आग्यापालन कराबैले बसमे करैचियै।
महज तोहर आँख खराब छौ त, तोहर पुरे देह अन्हार भ्याजेतौ। अहिनङे तोहर भितरके इजोत अन्हार हेतौ त, उ केहन अन्हार खोट-खोट हेतौ।
कथिलेत सब परकारके नै निक बातसब मनके भितरसे खराब बिचार, अनैतिक समबन्ध, चोरी, हतिया, बेबिचार
यि सब दुस्ट बातसब मनके भितरसे निक्लैछै आ लोकके असुध कैरदैछै।”