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दिब्य दरस 4:6 - गढवली नयो नियम

6 यांका अलावा, सिंहासन का संमणी कुछ छो जु कि बर्फ का जन स्पष्ट कांच से बणयां समुन्द्र जन दिखदो छो, अर उ बड़ो सिंहासन ऊं सब का बिल्कुल बीच मा छा, अर ऊंका चौ तरपां मिल चार ज्यून्दा प्राणियों तैं देखि जौका देह पूरा ढंग से आँखों बट्टी ढ़कयां छिनी।

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Garhwali

6 अर वीं राजगद्‍दी का समणि काँच का जन एक समुन्दर छौ। अर राजगद्‍दी का चौतरफि चार ज्यून्दा पराण जौं का अगनै-पिछनै आंखा ही आंखा छा।

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दिब्य दरस 4:6
25 Referans Kwoze  

तब मिल कुछ देखि जु समुद्र का जन दिख्यौन्दु छो अर कांच का जन चमकणु छो अर वेमा आग भि मिल गै छै। मिल ऊं लुखुं तैं भि देखि जु जानवर बट्टी नि हारी छा। ऊंल जानवर की अर वेकी मूर्ति की आराधना नि कैरी छै, अर ऊं पर जानवर का नौं की संख्या कु चिन्ह नि लगै गै छो। उख उ वे समुद्र का छाला पर खड़ा छा अर ऊं सभियूं की एक वीणा पकड़ी छै जु पिता परमेश्वर की ऊं तैं दीं छै।


फिर मिल चार ज्यून्दा प्राणियों अर चौबीस दाना-सयाणों का बीच सिंहासन का बगल मा एक चिनखा तैं खड़ो देखि। चिनखा पर बलिदान का निशान छा; जु वेका सात सींग अर सात आँखा छिनी जु परमेश्वर की आत्मा छिनी, जु सैरी धरती पर भिजे गैनी।


एक लाख चवालीस हजार (144,000) लोग सिंहासन, चार ज्यून्दा प्राणियों अर दाना-सयाणों का संमणी खड़ा छा; उ एक नया गीत गांणा छा, जै तैं भस उ ही सीख सकदा छा। भस उ ही छिनी जौं तैं पिता परमेश्वर ल धरती पर रौंण वला लुखुं का बीच मा छुड़ै छो।


अर चौबीसों दाना-सयाणों ल अर चरी ज्यून्दा प्राणियों ल गिरी के पिता परमेश्वर तैं दण्डवत् कैरी; जु सिंहासन पर बैठया छा, अर बोलि, “आमीन! पिता परमेश्वर की आराधना हो!”


अर चरी ज्यून्दा प्राणियों ल आमीन बोलि, अर दाना-सयाणों ल झुकि के वेकी आराधना कैरी।


सैरा स्वर्गदूत सिंहासन का चौ तरपां अर दाना-सयाणों अर चार ज्यून्दा प्राणियों का चौ तरपां खड़ा छा, फिर उ सिंहासन का संमणी मुख का बल गिरिनि अर पिता परमेश्वर की आराधना कैरी, ऊंल बोलि,


तब स्वर्गदूत ल मि तैं एक गाड दिखै जै मा जीवन कु पांणी छो। अर उ पांणी कांच का जन साफ छो। या गाड परमेश्वर अर चिनखा का सिंहासन का मूड़ी बट्टी बुगदी छै।


शहर पिता परमेश्वर कि तरपां बट्टी मिलण वली महिमा का तेज रोशनी ल चमकणु छो, अर वेको उज्यलो भौत ही कीमती ढुंगा, मतलब यशब नौं भौत कीमती ढुंगा का जन चमकणु छो, अर कांच का जन साफ छो।


बारह प्रवेश द्वार भि, एक-एक मोती का बणया छा, अर शहर की सड़क, उ खरा सोना ल बंणि गै छै जु कांच का जन चमकदी छै।


शहर खरा सोना बट्टी बणै गै छो जु कांच का जन चमकणु छो, अर येकी शहर की चकबंधी, यशब बट्टी बंणि छै, अर शहर इन शुद्ध सोना को छो, जु साफ कांच का सम्मान हो।


किलैकि चिनखो जु सिंहासन का बीच मा च, उ ऊंकी देखभाल करलो, उन ही जन एक चरवाहा अपड़ा ढिबरो की देखभाल करद; अर उ, ऊं तैं ताजा पांणी पींणु कु लिजालो जु लुखुं तैं जीवन दान दींद, अर पिता परमेश्वर ऊंकी आँखों बट्टी सभि आँसूओं तैं फूंजी दयालो।”


चौबीस सिंहासन वे तैं घेरी के छा; अर यूं सिंहासनों पर चौबीस दाना-सयाणा सफेद कपड़ा पैरी के बैठयां छा, अर ऊंका मुंड पर सोना का मुकुट छा।


जब वेल किताब (चाम्रपत्र) लींनि, त उ चरी ज्यून्दा प्राणी अर चौबीसों दाना-सयाणों ल वे चिनखा का संमणी झुकि गैनी; हर एक दाना-सयणां ल एक वीणा अर सोना कु बणयुं कटोरा पकड़यूं छो। कटोरा धूप ल भुरयां छो जु ऊं लुखुं की प्रार्थनाओं तैं बतांद जु पिता परमेश्वर का छिनी।


जब मिल फिर से देखि, त अचानक से मिल लाखों लाख स्वर्गदूतों की आवाज सूंणि, ऊं तैं गिणै नि जै सकद छो। उ राजा का वे सिंहासन का, ऊं चार ज्यून्दा प्राणियों का अर ऊं चौबीस दाना-सयाणों का चौ तरपां छा।


फिर मिल देखि कि चिनखा ल ऊं सात मुहरों मा बट्टी एक तैं खोलि; अर मिल चरी ज्यून्दा प्राणियों मा बट्टी एक तैं बुल्द सूंणि। वेकी आवाज गिडगिडांण का जन तेज छै, वेल बोलि, अब “औ।”


मिल सूंणि कि ऊं चार ज्यून्दा प्राणियों का बीच बट्टी कुई बुल्णु छो जु एक आदिम का जन छो, “भविष्य मा धरती पर अकाल होलो अर इलै एक दिन की मजदूरी भस एक किलो चौंल, या भस तीन किलो ग्यूं खरीदण कु ही पूरो होलो। पर जैतून का तेल अर दाखमधु की कीमत नि बदलली।”


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