34 उ चुप हवे गैनी किलैकि बट्टा मा ऊंल आपस मा ईं बात पर बहस कैरी छै कि हम मा बट्टी बड़ो कु च?
34 पर ऊ संट रैनी, किलैकि बाटा मा ऊंन इन बात-चित कैरी छै कि, “हम मा बटि सबसे खास कु च।”
मिल पैली भि तुम्हरी मंडलि का विश्वासियों कु एक चिठ्ठी लिखीं छै, पर दियुत्रिफेस मेरा आज्ञाओं तैं मनणु बट्टी इंकार करदु च, किलैकि उ हमेशा बट्टी खुद ही मण्डलि का अगुवा बनण चांदु छो।
लूंण त खूब च पर जु वेको स्वाद बितड़ि जौं त वे तैं क्य ल ल्युणणो करिल्या? अफ मा लूंण जन गुण रखा अर आपस मा मेल मिलाप से रावा।
अर जु लोग तुम तैं दियां छिनी, ऊं तैं आज्ञा दे के नि फेरा जन एक शासक अपड़ा लुखुं तैं आज्ञा दींद। बल्कि ऊंकु एक उदाहरण बणा।
परिवार का जन एक दुसरा बट्टी प्रेम कैरा; एक दुसरा कु आदर कन मा बढ़दी रावा।
उ आपस मा विचार कन लगि गैनी “हम मा रुट्टि नि च इलै उ बुल्णु च।”