“हे फरीसी दल का लोगु, तुम पर हाय च, किलैकि तुम पुदीना अर सुदाब नौ का पौधा को अर इन्नि बन्नि-बन्नि किसम का साग-पातो को भि दसुं हिस्सा देन्दयां। पर न्याय अर परमेस्वर का प्यार तैं टाळि देन्दयां, जब की तुमरो यू फरज छौ कि अपणा मन तैं शुद्ध बणै के परमेस्वर का प्यार तैं अर वेकी आज्ञा को पालन तुम खुद भि कना रौन्दा, अर यू ही तरीका लोगु तैं भि सिखौन्दा।