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इफिसुस 5:18 - Garhwali

18 अर झान्‍झियों की तरौं दारु नि घतौळा, किलैकि यां से जीवन बरबाद ह्‍वे जनदिन, पर तुम पवित्र आत्मा की ताकत से भरपूर होन्दी जा।

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गढवली नयो नियम

18 अर दाखमधु तैं पी कै धूत नि बंणयां रावा, किलैकि यु लुखुं कु रुखा, बेकाबू ढंग बट्टी बरतौ कनु कु कारण बणद, बल्कि पवित्र आत्मा तैं तुम तैं काबू मा कन द्यां।

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इफिसुस 5:18
33 Referans Kwoze  

अर हमरु सभौ दिन का उज्याळा का जन हो। हाँ, जन दिन को उज्याळु सभ्यों पर चमकदु, ठिक उन्‍नि हमरु सभौ भि हो ताकि वेका द्‍वारा हम सब लोगु खुणि अच्छु सभौ वळा बणि जा। अर नऽ त हमतै मौज-मस्ती करण चयेणी, अर ना ही हमतै नसा करण वळु होण चयेणु। अर नऽ त हमतै गळत सम्बन्ध रखण चयेणा, अर ना भोग-बिलास करण चयेणु, अर नऽ त हमतै कै का दगड़ा मा लड़ै-झगड़ा करण चयेणा, अर ना ही हमतै एक-दुसरा तैं देखि के जलत्यौण चयेणु।


किलैकि उ प्रभु का दिखण मा महान होलु, अर उ अंगूरों को रस या कन्दरि भि दारु नि प्यालु। अर अपणी माँ का कोख बटि ही उ पवित्र आत्मा से भरपूर होलु।


अर यू सब बतौणु खुणि ही मि तुम खुणि इन लिखणु छौं, कि तुमतै इन्द्रया लोगु का दगड़ा मा मेल-जोल नि रखण चयेणु, जु खुद तैं मसीह का लोग बतौन्दिन, मगर दुसरो का दगड़ा मा गळत सम्बन्ध रखदिन, या लालची छिन, अर मूरत पूजा या गळी देण वळा छिन, या फिर दरोळया, दुसरो तैं धोखा देण वळा छिन। अरे, मि तुमतै बतै देन्दु कि इन्द्रया लोगु का दगड़ा मा खाणुक खाण भि छोड़ि द्‍या।


किलैकि जु सिण वळा छिन ऊंकी आदत राति सिंणे की होन्दी, अर जु दारु पीण वळा छिन ऊंकी आदत जादातर राति ही दारु पीणे की होन्दी।


पर अगर उ नौकर अपणा मन मा सुचण लगि जौ कि मेरा मालिक न वापस देर से लौटण, अर तब उ दुसरा नौकरों तैं मरण-पिटण लगि जौ अर खाण-पीण वळु अर दरोळया ह्‍वे जौ।


इलै जब तुम बुरा ह्‍वेके भि अपणा बाल-बच्‍चों तैं अच्छी चीज देण जणद्‍यां, त जु लोग स्वर्ग मा रौण वळा पिता बटि मंगदा छिन ऊंतैं वु पवित्र आत्मा किलै नि द्‍यालु।”


चोरी करण वळा, लालची, दरोळया, गळी देण वळा, अर दुसरो तैं ठगण वळा, इन्द्रया लोग पिता परमेस्वर का राज का वारिस नि होला।


अर वे अध्यक्ष तैं तभि चुणी के ठैरैये जौ, जब उ निरदोष हो अर वेकी एक ही घरवळी हो। अर वेका बाल-बच्‍चा बिस्वासी हो, अर कै बात तैं नि मनण को दोष ऊं पर नि लग्यूं हो अर ना ही ऊंमा कुई जंगळि सभौ हो।


इलै चौकस रा, कखि तुम भि दुनियां का भोग-बिलास मा, दरोळया होण मा, अर जीवन की चिन्ता-फिकर कैरिके अपणा मन तैं यों बातों का भार से दबै नि द्‍या। अर वु दिन एक जाल की तरौं तुम पर अचानक से ऐ जालु।


किलैकि जब वेतैं खाण को बगत औन्दु, त तुम मा बटि कुछ लोग पैलि ही प्रभु-भोज तैं खै देन्दिन, अर इन कैरिके ऊ अपणु पुटगु भोरी देन्दिन अर कुछ त धुत भि ह्‍वे जनदिन, मगर कुछ इन होनदिन जौं खुणि यू बचदु भि नि च।


“हे शास्‍त्री अर फरीसी दल का लोगु, तुम पर हाय च तुम भौत बड़ा ढोंगि छाँ। तुम लोग कटोरा अर थकुला तैं भैरि-भैर मजौन्द्‍यां, मगर तुमरा भितर लालच अर बुरै ही भुरीं छिन।


अर तब उ अपणा दगड़ा का दुसरा नौकरों तैं मरण-पिटण लगि जौ, अर दरोळयों का दगड़ा खाण-पीण लगि जौ,


“हरेक मनखि त पैलि अच्छु अंगूरों को रस देन्दु च अर जब लोग पी के छक ह्‍वे जनदिन, तब हलकु वळु देन्दु च। पर तुमुन त अभि तक अंगूरों को अच्छु रस रख्युं च।”


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