लाडलो म तो घणोई चातो हो क, थानै बि छुटकारा क बारां म मांडूँ, जिका आपा बराबर का पाँतीवाळ हां। अर मनै अंय्यां बी लाग्यो क, म थानै अ बाता मांडर बढाओ द्युँ जिऊँ थे बिस्वास म बढता रेह्ओ, ओ बो बिस्वास ह जखो परमेसर का मिनखानै दिओ गयो ह।
मेरा लाडला बिस्वासी भाईड़ो, म चाऊँ हूँ थे इनै जाणो क म बोळी बार थारै कनै आबा की सोची क थारै म बाकी का दुसरा गैर-यहूदि मिनखा की जंय्यां फळ पा सकूँ पण हर बर क्युंना क्युं अंय्यां होयो क म कोनी आ सक्यो।