जिकै कान ह बे बानै खोल ले क, पबितर आत्मा बिस्वासी मंडळ्याऊँ काँई बोलै ह। जखो बी बुराईऊँ जीतसी म बिनै जीवन का दरख्त को फळ खाबा को हक देस्युँ जखो परमेसर का बाग म ह।
अर म एक हळका पिळा रंग को घोड़ो देख्यो। बिका सुवार को नाम मोत हो। बिकै गेल-गेल पताळ हो। धरती को एक चोथाई भाग बाकै बस म दिओ गयो हो क बे तलवारऊँ, काळऊँ, मरीऊँ अर धरती का जंगली जानबराऊँ मिनखानै मरवावै।
ईसु बाऊँ बोल्यो, “थे तो मिनखा म देख-दिखावा का धरमी हो। पण परमेसर तो थारा हियानै जाणै ह, क्युं क जखी चिज मिनखा की नजर्या म बोळी खास ह बिको परमेसर की नजर्या म काँई मोल?