8 इ बजेऊँ बिपै एक दिन मई बिपदा आ पड़सी। मोत, सोक, काळ बिपै पड़सी। अर आग बिनै बाळ गेरसी, क्युं क सऊँ सक्तिसाली परबु परमेसर बिको न्याय करसी।
बे दस सींग अर जि खुखार ज्यानबरनै तू देख्यो हो बे बि सऊँ बडी बेस्याऊँ नफरत करसी बे बिको सक्यु खोसर बिनै उघाड़ी कर देसी। अर बिको मास खाज्यासी अर बिनै आग म बाळ गेरसी।
बे आपकै उपर धूळ गेरता अर बार-घोड़ो मचाता बोलबा लाग्या, “ ‘हाय इ सऊँ बडी नगरी प, जिकी जायजादऊँ समदर म झाज चलाबाळा पिसाळा बणग्या। पण देखो! बा घड़ी भर मई नास होगी।’
के आपा परबुनै चिड़ाबो चावां हां? के आपा परबुऊँ बेत्ती सक्तिसाली होगा?
बे ओज्यु जोरऊँ बोल्या, “हालेलुया! जुग-जुग ताँई बि बडी नगरीऊँ धुँओ उठतो रेह्सी।”
घड़ी भर मई, इकी सगळी जायजाद जाती री।’ “बे सगळा जखा पाणी का झाज का कपतान अर बानै चलाबाळा अर बापै सवार हा अर बे सगळा मिनख जखा समदरऊँ आपको पेट भरै ह, बे दूर खड़्या होगा।
जखी लूगाईनै तू देख्यो हो आ बि बडी नगरीनै दिखावै जखी धरती का देस-देस प राज करै ह।”
अर बोलबा लाग्या, “सऊँ सक्तिसाली परबु परमेसर को म्हें धनेवाद करां हां, जखो पेलाऊँ हो, अर इब बी ह। क्युं क थे थारी म्हान सक्तिनै लेर राज करबो चालू कर्या हो।