32 बे बिका बचनाऊँ ताजूब करर्या हा क्युं क बो अधिकार क सागै सीख देतो हो।
आ देखर देखबाळा ताजूब करबा लाग्या अर सगळा आपसरी म बतळाबा लाग्या क, “ओ काँई बचन ह? अधिकार अर सक्ति क सागै ओ मिनख सूगली ओपरी बलायनै हुकम देवै अर बे निकळर भाग ज्यावीं।”
परमेसर की आत्मा तो जीवन देवै ह, पण मिनख की ताकत ख्याई काम की कोनी। जखी बात म थारूँ खई ह, बे परमेसर की आत्माऊँ ह अर जीवन देवै ह।
तू अ सगळी बाता अधिकार क सागै तेरा सुणबाळानै सीखा, जुर्त पड़ै तो बाकै दकाल लगा अर जुर्त पड़ै तो हिमत बंधा। कोईकै सामैई तनै निचो नइ देखणो पड़ै।
क्युं क ओ चोखो समचार थारै कनै बोली रूप मई कोनी पुग्यो पण सक्ति, पबितर आत्मा अर इकै सच की पुक्ताई क सागै पुग्यो ह। जंय्यां थे जाणोई हो क, म्हें थारा भला ताँई थारै मांयनै कंय्यां जिया।
म्हें बेसरमी का काम कोनी करां। नइ तो म्हें कपट राखां हां अर नइ झूठी बातानै परमेसर की कर बतावां हां। पण परमेसर क सामै म्हें सच बोलर्या हां अर जखा सचा हीं बेई इ बातनै जाणी हीं।
लोग बिका बचनानै सुणर ताजूब म पड़गा। क्युं क बो बानै सास्तरानै सीखाबाळा की जंय्यां परबचन कोनी देतो हो, पण अधिकार क सागै सीख देतो हो।
अर जत्ता बी बिनै सुणै हाक बे सगळा बिका समजदारी भर्या जुबाबा प ताजूब कर्यो।
बठै अरदास करबाळी झघा म एक मिनख हो जिमै एक सूगली ओपरी बलाय ही। बो जोरऊँ चिलाटी घाल्यो,
मनदर का पेरेदार बोल्या, “बि जंय्यां की बाता आज ताँई कोई कोनी करी!”