4 कई दिना ताँई तो बो बिकी सुणाई कोनी कर्यो। पण हार'र आपका मन म सोची, ‘म नइ तो परमेसरऊँ डरूँ अर नइ कोई मिनख की परवा करूं,
जणा बो भंडारी आपका मना मई बोल्यो, ‘आ तो गड़बड़ होगी इब म काँई करस्युं? क्युं क इब साऊकार मनै भंडारीपुणा प तो राखै कोनी अर तगारी मेरूँ गिरै कोनी, माँग के खाबा म मनै सरम आवै।
जणा बो आपका मन म सोचबा लाग्यो की, ‘नाजनै म कठै धरूँ। क्युं क मेर कनै तो इनै धरबा ताँई कोई झघाई कोनी।’
“कोई नगरी ही बिमै एक पंच रिह्या करतो हो, जखो नइ तो परमेसरऊँ डरतो अर नइ कोई मिनख की परवा करतो।
अर बि नगरी म एक खाली होईड़ी बी रेह्ती बा बार-बार बिकी छाती प आर खेती मेरो न्याय कर।
जणा अँगूरा का बाग को मालिक बोल्यो, ‘म काँई करूं? म इब मेरा लाडला छोरानै भेजस्युं। कमऊँ कम बिको तो बे लिहाज राखसी!’
जदकी आपणा बाप जखा काया म हीं बे आपणै दकाल लगाया करता हा अर आपा बाकी ईज्जत बी कर्या करता हा। जणा पाछै खुदनै बि परम-पिता क हात म सूप देणो चाए जखो आपणी आत्मा को परम-पिता ह जिऊँ आपा जीवता रेह्वां।