2 “कोई नगरी ही बिमै एक पंच रिह्या करतो हो, जखो नइ तो परमेसरऊँ डरतो अर नइ कोई मिनख की परवा करतो।
कई दिना ताँई तो बो बिकी सुणाई कोनी कर्यो। पण हार'र आपका मन म सोची, ‘म नइ तो परमेसरऊँ डरूँ अर नइ कोई मिनख की परवा करूं,
अर बि नगरी म एक खाली होईड़ी बी रेह्ती बा बार-बार बिकी छाती प आर खेती मेरो न्याय कर।
जणा अँगूरा का बाग को मालिक बोल्यो, ‘म काँई करूं? म इब मेरा लाडला छोरानै भेजस्युं। कमऊँ कम बिको तो बे लिहाज राखसी!’
जदकी आपणा बाप जखा काया म हीं बे आपणै दकाल लगाया करता हा अर आपा बाकी ईज्जत बी कर्या करता हा। जणा पाछै खुदनै बि परम-पिता क हात म सूप देणो चाए जखो आपणी आत्मा को परम-पिता ह जिऊँ आपा जीवता रेह्वां।