7 अर मांयनैऊँ उवाज आवै, ‘मनै दुखी मना करै, म सक्यु ढक ढकार मेरा टाबरा क सागै बिछावणा म हूँ। अर इ टेम उठर तनै क्युंई कोनी दे सकूँ।’
जद घर को मालिक खड़्यो होर बारनो ढक लेसी, अर जणा थे बारनै खड़्या होर कुआड़ खुड़कास्यो अर गिड़गिड़ास्यो, ‘म्हराज, म्हारै ताँई कुआड़ खोल द्यो।’ पण बो थानै खेसी, ‘मनै कोनी बेरो थे कूण हो अर कठैऊँ आया हो।’
इब म आखरी म खेऊँ हूँ क, आगै कोई बी मनै दुखी नइ करै, क्युं क म तो मेरी काया म ईसु मसी का घाव लेर घूमर्यो हूँ।
जणा बे बाकै सागै होलिआ। पण जद बे बिकाळा घरा क सांकड़ै लाग्याक बि टेम बो सुबेदार क्युंक भाईला क हात आ खुवा भेजी क, “परबु म अत्तो बडो आदमी कोनी, क थे मेरी छात क तळै आओ।
जद बे मोल लेबा ताँई जारी ही अत्ता मई बिंद आगो। अर जखी छोर्या त्यार ही बानै बिकै सागै ब्या हाळा कोठा म भेजर कुआड़ ढक दिआ गया।
क्युं क मेरो एक भाईलो सफर मऊँ इबी-इबी मेरै कनै पुग्यो ह अर बिकै सामै परूसबा ताँई मेर कनै क्युंई कोनी।’
म थानै बोलुँ, थारो भाईलो होबा क नातै बो कोनी उठै अर क्युंई कोनी दे। पण थारै बेसरमा होर बार-बार माँगबा की बजेऊँ बोई उठर थानै थारी जुर्त गेल देसी।