74 क पक्काई म्हारो छुटकारो म्हारा दुस्मनाऊँ होसी। अर परबु की सेवा करबा ताँई म्हानै कोई डर नइ होवै,
परमेसर आपानै डर की आत्मा कोनी दि पण ताकत, परेम अर खुदनै काबू म राखबा की आत्मा दि ह।
ज अ बाता साची ह जणा मसी को लोय कतो सक्तिसाली ह। अर अजर-अमर पबितर आत्मा क जरिए बो खुदनै निरदोस चढावा क रूप म परमेसरनै चढा दिओ, अंय्यां करबाऊँ अर लोयऊँ आपानै बो, मोत क गेलै लेज्याबाळा कामाऊँ सुद कर दिओ जिऊँ आपा जीवता परमेसर की सेवा कर सकां।
जखा दुख तनै भोगणा ह बाऊँ मना डर। क्युं क सेतान थारै मऊँ कयानै बिचासबा ताँई काळ-कोठड़ी म गेरसी अर थानै बठै दस दिना ताँई सताव भोगणो पड़सी। पण तू बिस्वास जोगो रेह्जे चाए तनै मोतई क्युं नइ आज्यावै। जणा म तनै तेरी जीत क रूप म अजर-अमर जीवन को मुकट देस्युँ।
अर जत्ता बी आपकै जीता-जीव मोत का डर की गुलामी म हा बानै छुड़ावै।
क्युं क जखी आत्मा थानै दि गई ह, बा थानै ओज्यु दास बणाबा नहिस डराबा ताँई कोनी पण आपानै बिकी ओलाद बणाबा ताँई ह जिऊँ आपा “अब्बा, परम-पिता” खेर बुलावां हां।
बे म्हानै म्हारा दुस्मनाऊँ अर म्हारूँ नफरत राखबाळा की सक्तिऊँ बचासी।
पण इब थानै पाप का बंदणाऊँ छुटा लिओ गयो ह, अर थे परमेसर का दास बणगा हो, जणा जखी खेती थे काटर्या हो बा थानै पबितरता म लेज्यावै ह जिको आखरी फळ अजर-अमर जीवन ह।
आ सोगन बो आपणा बडका अब्राहमऊँ खाई,
अर सगळी उमर आपा रोजकी बिकै सामै पबितर अर धरमी रेह्वां।