34 थे मनै ढुंढस्यो पण म थानै कोनी लाधूं। क्युं क जठै म रेहस्युं, बठै थे कोनी जा सको।”
ओ परम-पिताजी, जखा मिनख थे मनै सूप्या हो म चाऊँ हूँ क बे बी बठै मेरै सागै होवीं जठै म हूँ, जिऊँ क बे बि मेमानै देख सकीं जखी थे मनै दिआ हो, क्युं क इ सरस्टिनै रचबाऊँ पेली थे मेरूँ परेम कर्यो।
ईसु बिऊँ बोल्यो, “सच, जीवन अर गेलो मई हूँ। मेरै बिना कोई परम-पिता कनै कोनी जा सकै।”
बठै थारै ताँई झघा बणाया पाछै म थानै लेबा आस्युं। बिकै पाछै आपा सागैई रेहस्यां।
म थानै सची बोलुँ हूँ थे इबऊँ मनै जद ताँई कोनी देखस्यो जद ताँई थे थारा मुंडाऊँ अंय्यां नइ खेदेस्यो क बो धने ह जखो परबु क नामऊँ आवै ह।”
आ काँई बात ह जखी बो बोली ह, ‘थे मनै ढुंढस्यो पण म लाधूं कोनी,’ अर ‘जठै म हूँ बठै थे कोनी जा सको?’”