18 दारू पीर मतवाळा मना बणो, क्युं क इऊँ मत्त मारी ज्यावै, पण इकी बजाय पबितर आत्मा म भर्यापूरा होता जाओ।
जणा क्युंना आपा सूल रेह्वां जंय्यां मिनख दिन का उजाळा म रेह्वै। खा पीर धुत्त रेह्बाळासा नइ, नइ कुकरम अर रांडबाज की जंय्यां, नइ लड़बाळा की जंय्यां अर नइ बळोकड़ा की जंय्यां।
परमेसर की नजर्या म बो म्हान होसी अर बो अँगूरी अर नसिली चिजा कदैई कोनी पिसी, अर बो आपकी माँ का पेटऊँई पबितर आत्माऊँ भरेड़ो होसी।
पण मेरो अंय्यां मांडबा को ओ मतबल ह क थे अंय्यां का मिनखाऊँ नातो मना राखज्यो जखा देख दिखाई का बिस्वासी भाई बणी हीं पण बे कुकरमी, लालची, मूरतीपुजबाळा, गाळीगळोच करबाळा, पियाचरी करबाळा अर ठग हीं। अंय्यां का मिनखा क सागै उठा-बेठी मना राखज्यो।
बो पबितर आत्मा अर बिस्वासऊँ भरेड़ो एक भलो मिनख हो। इकै पाछै ओर बोळा मिनख परमेसर प बिस्वास कर्या।
क्युं क जखा सोवै ह बे रातनैई सोवै ह, अर पीबाळा रातनैई पीर मतवाळा होवै ह।
पण ज बो दास मन म आ सोचर क मेरा मालिकनै तो हाल आबा म टेम ह, अर बो पीआ चरी कर दुसरा दास दास्यानै मारबा-कुटबा लागज्यावै।
ज थे बुरा होर बी थारा टाबर टिकरानै चोखी चिज देबो जाणो हो। जणा थारो परम-पिता जखो ईस्बर नगरी म बिराजै ह आपका माँगबाळानै पबितर आत्मा क्युं कोनी देसी?”
चोर लूटेरा, लालची, दारूखोर्या, भिड़ाबाळा, अर ठग परमेसर का राज का वारिस कोनी होसी।
एक बडका म अ बाता होणी चाए क, बिमै कोई एब नइ हो, बिकै एकई लूगाई हो, बिका टाबर बिस्वासी, संस्कारी अर आज्ञा मानबाळा हो।
“इ ताँई चेता म रेह्वो, कदै अंय्यां नइ होज्या क थे तो लाग्या रेह्वो पीबा-खाबा अर आटा चून की चिंत्या म अर बो दिन थार प फंदा की जंय्यां आ पड़ै।
क्युं क थारै मऊँ क्युंक ओराऊँ पेल्याई पेट भरली हीं जणा घणकरा क क्युंई हात कोनी आवै। अर कई तो अंय्यां का हीं जखा पीर मतवाळा होज्यावीं हीं।
“सास्तर्यो अर फरिसीयो! थार प धिक्कार ह, थे लालची अर मतलबी हो। थे बि कचोळा अर थाळी की जंय्यां हो जखा मांयनैऊँ नइ पण बारनै-बारनैऊँ मांज्या जावीं हीं।
अर नोकर-चाकरानै मारबा-कुटबा लाग्यो अर दारूकुट्या क सागै खाबा-पीबा लाग्यो।
अर बोल्यो, “सगळा मिनख पेली चोखी अँगूरी परोसी हीं, अर मिनखा क पीर धाप्या पाछै हळकी। पण तू तो चोखी अँगूरी हाल ताँई राख राखी ह।”