1 बठैऊँ बिदा होर म्हें पाणी क गेला कोस अर रूदुस टापू होताहोया दो दिन पाछै पतरा नगरी म पुग्या।
मेरा लाडला बिस्वास्यो, जद म्हें क्युंक दिना ताँई थारूँ कायाऊँ दूर हा पण हियाऊँ तो थारै कनैई हा, जणाबी म्हानै थारी बोळी उसेर आई अर थारूँ ओज्यु मिलबा की म्हें बोळी कोसिस करी।
सीखाबा क पाछै बो समोनऊँ बोल्यो, “इ न्यावनै गेरा पाणी म लेचाल अर मछी पकड़बा ताँई थारा जाळ गेरो।”
म्हें अदरमुतियुमऊँ आबाळा एक पाणी हाळा झाज प चढर चाल पड़्या, जखो एसिया का समदरी भागाऊँ होतो होयो जाबाळो हो। अर एक थिसलूनिकी को रेह्बाळो एक मकीदुनी, जिको नाम अरिस्तखुस हो बो म्हारै सागै हो।
एक दिन ईसु आपका चेला क सागै न्याव म चढगो अर बानै खयो, “आओ आपा झिल क परलै-पार चालां।” जणा चेला ह जखा न्याव हांक दिनी।
भाळ सामै की ही, इ बजेऊँ बठैऊँ बे साईपरस का टापू की ओट म चाल पड़्या।