13 पण क्युंक जणा बिस्वास्या की हसी उडाबा लाग्या अर बोल्या, “अ तो पीएड़ा हीं।”
मानल्यो जद बिस्वासी मंडळी एक झघा भेळी होवै अर सगळा न्यारी-न्यारी बोली बोलबा लागज्या जखी बे कोनी सीखी अर ज बिस्वास नइ करबाळा मिनख जखा परमेसर का इ बरदान क बारां म कोनी जाणै बिस्वासी मंडळी म आज्यावै जणा बे कोनी सोचींगा थे बावळा हो?
थे जंय्यां समजर्या हो बंय्यां कोनी ह आ मऊँ कोईसोई कोनी पीएड़ो अर बंय्यां बी हाल तो दिन का नोई बज्या ह।
दारू पीर मतवाळा मना बणो, क्युं क इऊँ मत्त मारी ज्यावै, पण इकी बजाय पबितर आत्मा म भर्यापूरा होता जाओ।