16 सदाई राजी-खुसी रेह्ओ।
आस म राजी रेह्ओ, पिड़ा म थ्यावस राखो, लगातार अरदास करता रेह्ओ।
परबु को संगरो राख'र सदाई राजी-खुसीऊँ रेह्ओ, म ओज्यु थानै खेऊँ हूँ, राजी-खुसीऊँ रेह्ओ।
जणा थे राजी होज्यो क्युं क ईस्बर नगरी म थानै इको फळ मिलसी। क्युं क बे तो परमेसर की खेबाळानै बी जखा थारूँ पेली हा बानै बी अंय्यांई सताया हा।
म्हारा हिया म पिड़ा ह पण म्हें सदाई राजी रेह्वां हां, म्हें कंगला की जंय्यां दिखां हां पण ओरानै पिसाळा बणा देवां हां, म्हें रिता हात दिखां हां पण म्हारै कनै सक्यु ह।
पण इ बात प राजी मना होवो की ओपरी बलाया थारै बळ म ह पण इ बात प राजी होवो की थारा नाम ईस्बर नगरी म मंडर्या हीं।”
जणा बे बिऊँ बोल्या, “म्हराज थे आ रोटी म्हानै सदाई दिआ करो।”