1 राजाओं 21:2 - सरल हिन्दी बाइबल2 इन घटनाओं के बाद अहाब ने नाबोथ के सामने यह प्रस्ताव रखा, “मुझे अपना दाख की बारी दे दो. मैं इसे अपने लिए साग-पात का बगीचा बनाना चाहता हूं, क्योंकि यह मेरे घर के पास है. इसकी जगह पर मैं तुम्हें इससे बेहतर अंगूर का बगीचा दे दूंगा या अगर तुम्हें सही लगे तो मैं तुम्हें इसका पूरा दाम दे सकता हूं.” अध्याय देखेंपवित्र बाइबल2 एक दिन अहाब ने नाबोत से कहा, “अपना यह फलों का बाग मुझ दे दो। मैं इसे सब्जियों का बाग बनाना चाहता हूँ। तुम्हारा बाग मेरे महल के पास है। मैं इसके बदले तुम्हें इससे अच्छा अंगूर का बाग दूँगा या, यदि तुम पसन्द करोगे तो इसका मूल्य मैं सिक्कों में चुकाऊँगा।” अध्याय देखेंHindi Holy Bible2 इन बातों के बाद अहाब ने नाबोत से कहा, तेरी दाख की बारी मेरे घर के पास है, तू उसे मुझे दे कि मैं उस में साग पात की बारी लगाऊं; और मैं उसके बदले तुझे उस से अच्छी एक वाटिका दूंगा, नहीं तो तेरी इच्छा हो तो मैं तुझे उसका मूल्य दे दूंगा। अध्याय देखेंपवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)2 अहाब ने नाबोत से कहा, ‘तुम अपना अंगूर का उद्यान मुझे दे दो। मैं वहां अपने लिए साग-भाजी का बाग लगाऊंगा; क्योंकि तुम्हारा अंगूर-उद्यान मेरे महल के समीप है। मैं तुम्हें उसके बदले में उससे अच्छा अंगूर का उद्यान दूंगा। अथवा यदि तुम्हें अपनी दृष्टि में यह बात उचित प्रतीत होगी तो मैं तुम्हें उसका मूल्य चांदी के सिक्के में चुका सकता हूँ।’ अध्याय देखेंपवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)2 इन बातों के बाद अहाब ने नाबोत से कहा, “तेरी दाख की बारी मेरे घर के पास है, तू उसे मुझे दे कि मैं उस में साग–पात की बारी लगाऊँ; और मैं उसके बदले तुझे उससे अच्छी एक बाटिका दूँगा, नहीं तो तेरी इच्छा हो तो मैं तुझे उसका मूल्य दे दूँगा।” अध्याय देखेंइंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 20192 इन बातों के बाद अहाब ने नाबोत से कहा, “तेरी दाख की बारी मेरे घर के पास है, तू उसे मुझे दे कि मैं उसमें साग-पात की बारी लगाऊँ; और मैं उसके बदले तुझे उससे अच्छी एक वाटिका दूँगा, नहीं तो तेरी इच्छा हो तो मैं तुझे उसका मूल्य दे दूँगा।” अध्याय देखें |
इस पर आकीश ने दावीद को बुलाकर उनसे कहा, “जीवन्त याहवेह की शपथ, तुम सच्चे रहे हो, और व्यक्तिगत रूप से मुझे सही यही लग रहा है कि इस युद्ध में तुम मेरे साथ साथ आया जाया करो. जिस दिन से तुम मेरे आश्रय में आए हो, तब से आज तक मुझे तुममें कुछ भी अप्रिय नहीं लगा. अब क्या किया जा सकता है; यदि सेनापति तुम्हें स्वीकार करना नहीं चाहते?