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नीतिवचन 15:28 - पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

28 धर्मी मन में सोचता है कि क्या उत्तर दूँ, परन्तु दुष्‍टों के मुँह से बुरी बातें उबल आती हैं।

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पवित्र बाइबल

28 धर्मी जन का मन तौल कर बोलता है किन्तु दुष्ट का मुख, बुरी बात उगलता है।

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Hindi Holy Bible

28 धर्मी मन में सोचता है कि क्या उत्तर दूं, परन्तु दुष्टों के मुंह से बुरी बातें उबल आती हैं।

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

28 उत्तर देने के पूर्व धार्मिक मनुष्‍य अपने मन में विचार करता है; किन्‍तु दुर्जन का मुंह बुरी बातें ही उगलता रहता है।

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नवीन हिंदी बाइबल

28 धर्मी मनुष्य अपने मन में सोचता है कि वह क्या उत्तर दे, परंतु दुष्‍टों का मुँह बुरी बातें उगलता है।

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सरल हिन्दी बाइबल

28 उत्तर देने के पूर्व धर्मी अपने हृदय में अच्छी रीति से विचार कर लेता है, किंतु दुष्ट के मुख से मात्र दुर्वचन ही निकलते हैं.

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नीतिवचन 15:28
17 क्रॉस रेफरेंस  

पर मसीह को प्रभु जानकर अपने अपने मन में पवित्र समझो। जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ;


मूर्ख अपने सारे मन की बात खोल देता है, परन्तु बुद्धिमान अपने मन को रोकता, और शान्त कर देता है।


बातें करने में उतावली न करना, और न अपने मन से कोई बात उतावली में परमेश्‍वर के सामने निकालना, क्योंकि परमेश्‍वर स्वर्ग में है और तू पृथ्वी पर है; इसलिये तेरे वचन थोड़े ही हों।


बुद्धिमान ज्ञान का ठीक बखान करते हैं, परन्तु मूर्खों के मुँह से मूढ़ता उबल आती है।


हे साँप के बच्‍चो, तुम बुरे होकर कैसे अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है, वही मुँह पर आता है।


कोई वचन कहकर अपने को पाप में न फँसाना, और न ईश्‍वर के दूत के सामने कहना कि यह भूल से हुआ; परमेश्‍वर क्यों तेरा बोल सुनकर अप्रसन्न हो, और तेरे हाथ के कार्यों को नष्‍ट करे?


क्या तू बातें करने में उतावली करनेवाले मनुष्य को देखता है? उससे अधिक तो मूर्ख ही से आशा है।


बुद्धिमान का मन उसके मुँह पर भी बुद्धिमानी प्रगट करता है, और उसके वचन में विद्या रहती है।


सब चतुर तो ज्ञान से काम करते हैं, परन्तु मूर्ख अपनी मूढ़ता फैलाता है।


जहाँ बहुत बातें होती हैं, वहाँ अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुँह को बन्द रखता वह बुद्धि से काम करता है।


वे व्यर्थ घमण्ड की बातें कर करके लुचपन के कामों के द्वारा, उन लोगों को शारीरिक अभिलाषाओं में फँसा लेते हैं जो भटके हुओं में से अभी निकल ही रहे हैं।


देख वे डकारते हैं, उनके मुँह के भीतर तलवारें हैं, क्योंकि वे कहते हैं, “कौन सुनता है?”


धर्मी ग्रहणयोग्य बात समझ कर बोलता है, परन्तु दुष्‍टों के मुँह से उलट फेर की बातें निकलती हैं।


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