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इब्रानियों 7:11 - पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

11 यदि लेवीय याजक पद के द्वारा सिद्धि प्राप्‍त हो सकती (जिसके सहारे लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्या आवश्यकता थी कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए?

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पवित्र बाइबल

11 यदि लेवी सम्बन्धी याजकता के द्वारा सम्पूर्णता प्राप्त की जा सकती क्योंकि इसी के आधार पर लोगों को व्यवस्था का विधान दिया गया था। तो किसी दूसरे याजक के आने की आवश्यकता ही क्या थी? एक ऐसे याजक की जो मिलिकिसिदक की परम्परा का हो, न कि औरों की परम्परा का।

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Hindi Holy Bible

11 तक यदि लेवीय याजक पद के द्वारा सिद्धि हो सकती है (जिस के सहारे से लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्या आवश्यकता थी, कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए?

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

11 इस्राएली प्रजा को लेवियों के पुरोहितत्‍व के आधार पर व्‍यवस्‍था मिली थी। यदि इस पुरोहितत्‍व के माध्‍यम से पूर्णता प्राप्‍त हो सकती थी, तो यह क्‍यों आवश्‍यक था कि एक अन्‍य पुरोहित की चर्चा की जाये जो हारून की नहीं, बल्‍कि मलकीसेदेक की श्रेणी में आ जायेगा?

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नवीन हिंदी बाइबल

11 अब यदि सिद्धता लेवीय याजक पद के द्वारा प्राप्‍त होती (क्योंकि इसी आधार पर लोगों को व्यवस्था प्राप्‍त हुई थी), तो फिर किसी दूसरे याजक के खड़े होने की क्या आवश्यकता थी जो हारून की रीति के अनुसार न होकर मलिकिसिदक की रीति के अनुसार हो?

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सरल हिन्दी बाइबल

11 अब यदि सिद्धि (या पूर्णता) लेवी याजकता के माध्यम से प्राप्‍त हुई—क्योंकि इसी के आधार पर लोगों ने व्यवस्था प्राप्‍त की थी—तब एक ऐसे पुरोहित की क्या ज़रूरत थी, जिसका आगमन मेलखीज़ेदेक की श्रृंखला में हो, न कि हारोन की श्रृंखला में?

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इब्रानियों 7:11
17 क्रॉस रेफरेंस  

मैं परमेश्‍वर के अनुग्रह को व्यर्थ नहीं ठहराता; क्योंकि यदि व्यवस्था के द्वारा धार्मिकता होती, तो मसीह का मरना व्यर्थ होता।


वैसे ही हम भी, जब बालक थे, तो संसार की आदि शिक्षा के वश में होकर दास बने हुए थे।


पर अब जो तुम ने परमेश्‍वर को पहचान लिया वरन् परमेश्‍वर ने तुम को पहचाना, तो उन निर्बल और निकम्मी आदि–शिक्षा की बातों की ओर क्यों फिरते हो, जिनके तुम दोबारा दास होना चाहते हो?


और उसे परमेश्‍वर की ओर से मलिकिसिदक की रीति पर महायाजक का पद मिला।


इसी प्रकार वह दूसरी जगह में भी कहता है, “तू मलिकिसिदक की रीति पर सदा के लिये याजक है।”


जहाँ यीशु ने मलिकिसिदक की रीति पर सदा काल का महायाजक बनकर, हमारे लिये अगुआ के रूप में प्रवेश किया है।


क्योंकि जिस समय मलिकिसिदक ने उसके पिता से भेंट की, उस समय वह अपने पिता की देह में था।


क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है, तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है।


क्योंकि जिसके विषय में ये बातें कही जाती हैं कि वह दूसरे गोत्र का है, जिसमें से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की,


हमारा दावा और भी स्पष्‍टता से प्रगट हो जाता है, जब मलिकिसिदक के समान एक और याजक उत्पन्न हो जाता है,


क्योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराए गए पर यह शपथ के साथ उसकी ओर से नियुक्‍त किया गया जिसने उसके विषय में कहा, “प्रभु ने शपथ खाई, और वह उससे फिर न पछताएगा कि तू युगानुयुग याजक है”।


क्योंकि यदि वह पहली वाचा निर्दोष होती, तो दूसरी के लिये अवसर न ढूँढ़ा जाता।


ये वस्तुएँ इस रीति से तैयार हो चुकीं। उस पहले तम्बू में याजक हर समय प्रवेश करके सेवा के कार्य सम्पन्न करते हैं,


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