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अय्यूब 4:17 - पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

17 ‘क्या नाशमान मनुष्य परमेश्‍वर से अधिक धर्मी हो सकता है? क्या मनुष्य अपने सृजनहार से अधिक पवित्र हो सकता है?

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पवित्र बाइबल

17 “मनुष्य परमेश्वर से अधिक उचित नहीं हो सकता। अपने रचयिता से मनुष्य अधिक पवित्र नहीं हो सकता।

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Hindi Holy Bible

17 क्या नाशमान मनुष्य ईश्वर से अधिक न्यायी होगा? क्या मनुष्य अपने सृजनहार से अधिक पवित्र हो सकता है?

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

17 “क्‍या परमेश्‍वर के सामने नश्‍वर मनुष्‍य धार्मिक प्रमाणित हो सकता है? क्‍या बलवान मनुष्‍य अपने बनानेवाले के सामने पवित्र सिद्ध हो सकता है?

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सरल हिन्दी बाइबल

17 ‘क्या मानव जाति परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी हो सकती है? क्या रचयिता की परख में मानव पवित्र हो सकता है?

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019

17 ‘क्या नाशवान मनुष्य परमेश्वर से अधिक धर्मी होगा? क्या मनुष्य अपने सृजनहार से अधिक पवित्र हो सकता है?

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अय्यूब 4:17
25 क्रॉस रेफरेंस  

इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे कि दुष्‍ट के संग धर्मी को भी मार डाले, और धर्मी और दुष्‍ट दोनों की एक ही दशा हो। यह तुझ से दूर रहे। क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे?”


अशुद्ध वस्तु से शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं।


मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? या जो स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या कि निर्दोष हो सके?


फिर मनुष्य परमेश्‍वर की दृष्‍टि में धर्मी कैसे ठहर सकता है? जो स्त्री से उत्पन्न हुआ है वह कैसे निर्मल हो सकता है?


जिसने मुझे गर्भ में बनाया क्या वही उसका भी बनानेवाला नहीं? क्या एक ही ने हम दोनों की सूरत गर्भ में न रची थी?


क्योंकि मुझे तो चापलूसी करना आता ही नहीं नहीं तो मेरा सिरजनहार क्षण भर में मुझे उठा लेता।


तौभी कोई यह नहीं कहता, ‘मेरा सृजनेवाला परमेश्‍वर कहाँ है, जो रात में भी गीत गवाता है;


“क्या तू इसे अपना हक़ समझता है? क्या तू दावा करता है कि तेरा धर्म परमेश्‍वर के धर्म से अधिक है?


मैं अपने ज्ञान की बात दूर से ले आऊँगा, और अपने सिरजनहार को धर्मी ठहराऊँगा।


वह चुपचाप ठहर गई और मैं उसकी आकृति को पहिचान न सका। परन्तु मेरी आँखों के सामने कोई रूप था; पहिले सन्नाटा छाया रहा, फिर मुझे एक शब्द सुनाई पड़ा :


क्या तू मेरा न्याय भी व्यर्थ ठहराएगा? क्या तू आप निर्दोष ठहरने की मनसा से मुझ को दोषी ठहराएगा?


क्या परमेश्‍वर अन्याय करता है? और क्या सर्वशक्‍तिमान धर्म को उलटा करता है?


“मैं निश्‍चय जानता हूँ कि बात ऐसी ही है; परन्तु मनुष्य परमेश्‍वर की दृष्‍टि में कैसे धर्मी ठहर सकता है?


और अपने दास से मुक़द्दमा न चला! क्योंकि कोई प्राणी तेरी दृष्‍टि में निर्दोष नहीं ठहर सकता।


यहोवा अपनी सब गति में धर्मी और अपने सब कामों में करुणामय है।


नि:सन्देह पृथ्वी पर कोई ऐसा धर्मी मनुष्य नहीं जो भलाई ही करे और जिस से पाप न हुआ हो।


हे यहोवा, यदि मैं तुझ से मुक़द्दमा लड़ूँ, तौभी तू धर्मी है; मुझे अपने साथ इस विषय पर वादविवाद करने दे। दुष्‍टों की चाल क्यों सफल होती है? क्या कारण है कि विश्‍वासघाती बहुत सुख से रहते हैं?


मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?


आहा! परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!


पर तू अपनी कठोरता और हठीले मन के कारण उसके क्रोध के दिन के लिये, जिसमें परमेश्‍वर का सच्‍चा न्याय प्रगट होगा, अपने लिये क्रोध कमा रहा है।


हे मनुष्य, भला तू कौन है जो परमेश्‍वर का सामना करता है? क्या गढ़ी हुई वस्तु गढ़नेवाले से कह सकती है, “तू ने मुझे ऐसा क्यों बनाया है?”


चारों प्राणियों के छ: छ: पंख हैं, और चारों ओर और भीतर आँखें ही आँखें हैं; और वे रात दिन बिना विश्राम लिये यह कहते रहते हैं, “पवित्र, पवित्र, पवित्र प्रभु परमेश्‍वर, सर्वशक्‍तिमान, जो था और जो है और जो आनेवाला है।”


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