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सभोपदेशक 3:19 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

19 मनुष्‍य और पशु एक ही गति को प्राप्‍त होते हैं। जैसे पशु मरता है वैसे ही मनुष्‍य भी। उन सब में एक ही से प्राण हैं। मनुष्‍य पशु से श्रेष्‍ठ नहीं है। अत: सब व्‍यर्थ है।

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पवित्र बाइबल

19 क्या एक व्यक्ति एक पशु से उत्तम हैं? नहीं। क्यों? क्योंकि हर वस्तु नाकारा है। मृत्यु जैसे पशुओं को आती है उसी प्रकार मनुष्यों को भी। मनुष्य और पशु एक ही श्वास लेते हैं। क्या एक मरा हुआ पशु एक मरे हुए मनुष्य से भिन्न होता है?

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Hindi Holy Bible

19 क्योंकि जैसी मनुष्यों की वैसी ही पशुओं की भी दशा होती है; दोनों की वही दशा होती है, जैसे एक मरता वैसे ही दूसरा भी मरता है। सभों की स्वांस एक सी है, और मनुष्य पशु से कुछ बढ़कर नहीं; सब कुछ व्यर्थ ही है।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

19 क्योंकि जैसी मनुष्यों की वैसी ही पशुओं की भी दशा होती है; दोनों की वही दशा होती है, जैसे एक मरता वैसे ही दूसरा भी मरता है। सभों की स्वांस एक सी है, और मनुष्य पशु से कुछ बढ़कर नहीं; सब कुछ व्यर्थ ही है।

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नवीन हिंदी बाइबल

19 मनुष्यों और पशुओं का अंत तो एक जैसा ही होता है। जैसे एक मरता है वैसे ही दूसरा भी मरता है। उन सब में एक ही श्‍वास है, तथा मनुष्य किसी बात में पशु से बढ़कर नहीं। सब कुछ व्यर्थ है।

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सरल हिन्दी बाइबल

19 क्योंकि मनुष्य तथा पशु का अंत एक ही है: जैसे एक की मृत्यु होती है वैसे दूसरे की भी. उनकी सांस एक जैसी है; मनुष्य पशु से किसी भी तरह से बेहतर नहीं, क्योंकि सब कुछ बेकार है.

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सभोपदेशक 3:19
18 क्रॉस रेफरेंस  

हम सबको एक न एक दिन मरना ही है। हम भूमि पर उण्‍डेले गए जल के समान हैं जिसको फिर एकत्र नहीं किया जा सकता है; और न परमेश्‍वर शव को खड़ा करता है। अब महाराज ऐसी योजना बनाएँ कि निर्वासित व्यक्‍ति उनसे दूर न रहे, वह देश-निकाला हुआ न रहे।


जब तू अपना मुंह फेरता है, तब वे आतंकित होते हैं; जब तू उनकी सांस वापस लेता है, तब वे मर जाते हैं, और अपनी मिट्टी को लौट जाते हैं।


मनुष्‍य ऐश्‍वर्य में सदा नहीं रह सकता है; वह नाशवान पशु के समान है।


यह उनकी नियति है जो झूठा भरोसा करते हैं। यह उनका अन्‍त है जो अपने अंश में मगन रहते हैं। सेलाह


मनुष्‍य ऐश्‍वर्य में रहे, और समझ न रखे तो वह नाशमान पशु के समान है।


जो कुछ सूर्य के नीचे धरती पर होता है, वह सब मैंने देखा है। मुझे अनुभव हुआ कि यह सब निस्‍सार है− यह मानो हवा को पकड़ना है।


अत: मैंने अपना मन यह जानने में लगाया कि बुद्धि क्‍या है, पागलपन और मूर्खता क्‍या है। तब मुझे ज्ञात हुआ कि यह भी हवा को पकड़ना है। क्‍योंकि−


बुद्धिमान व्यक्‍ति के सिर में उसकी आंखें होती हैं, और वह देखकर चलता है, किन्‍तु मूर्ख मनुष्‍य अन्‍धकार में टटोलता है। तो भी मुझे यह अनुभव हुआ कि मूर्ख और बुद्धिमान दोनों एक ही गति को प्राप्‍त होते हैं।


क्‍योंकि जैसे मूर्ख की स्‍मृति स्‍थायी नहीं होती वैसे ही बुद्धिमान की भी स्‍मृति स्‍थायी नहीं होती। कुछ ही दिनों में लोग सब भूल जाते हैं। जैसे मूर्ख मरता है वैसे ही बुद्धिमान भी।


भोज के उत्‍सव में सम्‍मिलित होने की अपेक्षा मृत्‍यु-शोक से पीड़ित परिवार में जाना अच्‍छा है, क्‍योंकि मृत्‍यु ही सब मनुष्‍यों का अन्‍त है। अत: जीवित व्यक्‍ति गम्‍भीरतापूर्वक अपने अन्‍त पर विचार करेगा।


मनुष्‍य अपना समय नहीं जानता। जैसे मछली कुटिल जाल में फंस जाती है, जैसे पक्षी फंदे में फंस जाते हैं, वैसे ही मनुष्‍य समय-जाल में फंस जाते हैं। यह जाल अचानक उन पर पड़ता है।


सब की नियति एक ही है: धार्मिक और अधार्मिक, भला और बुरा, शुद्ध और अशुद्ध, बलि चढ़ानेवाला− बलि न चढ़ानेवाला। जो नियति अच्‍छे मनुष्‍य की है वही पापी मनुष्‍य की है। जो अपनी शपथ को पूरा करता है, उसकी नियति वही है, जो अपनी शपथ का उल्‍लंघन करता है।


यदि अन्‍य मनुष्‍यों की मृत्‍यु के सदृश इन लोगों की स्‍वाभाविक मृत्‍यु होगी, यदि अन्‍य मनुष्‍यों के दण्‍ड के सदृश इन्‍हें भी दण्‍ड दिया जाएगा, तो समझना कि प्रभु ने मुझे नहीं भेजा है।


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