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सभोपदेशक 1:2 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

2 सभा-उपदेशक यह कहता है: सब व्‍यर्थ है, सब निस्‍सार है। निस्‍सन्‍देह सब व्‍यर्थ है, सब निस्‍सार है; सब कुछ व्‍यर्थ है!

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पवित्र बाइबल

2 उपदेशक का कहना है कि हर वस्तु अर्थहीन है और अकारथ है! मतलब यह कि हर बात व्यर्थ है!

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Hindi Holy Bible

2 उपदेशक का यह वचन है, कि व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

2 उपदेशक का यह वचन है, “व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है।”

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नवीन हिंदी बाइबल

2 उपदेशक कहता है, “व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है!”

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सरल हिन्दी बाइबल

2 “बेकार ही बेकार!” दार्शनिक का कहना है. “बेकार ही बेकार! बेकार है सब कुछ.”

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सभोपदेशक 1:2
23 क्रॉस रेफरेंस  

यदि जंगली गदही से मनुष्‍य का बच्‍चा पैदा हो सकता है, तो मूर्ख मनुष्‍य को भी सद्बुद्धि प्राप्‍त हो सकती है!


मानव श्‍वास के सदृश है, उसकी आयु के दिन ढलती छाया के समान हैं।


हे स्‍वामी, स्‍मरण कर, जीवन-काल कितना अल्‍प है; तूने सब मनुष्‍यों को नश्‍वर उत्‍पन्न किया है।


ओ तरुण! अपने हृदय से परेशानी को निकाल दे, शरीर में दर्द न होने दे; क्‍योंकि तेरी तरुणाई, जीवन की यह उषा, व्‍यर्थ है।


यदि मनुष्‍य अनेक वर्षों तक जीवित रहता है तो उसे चाहिए कि वह अपनी आयु के सब वर्षों में जीवन का आनन्‍द ले, किन्‍तु वह स्‍मरण रखे कि अन्‍धकार के दिन भी कम नहीं होंगे। अत: जो कुछ होता है, वह व्‍यर्थ है।


सभा-उपदेशक यह कहता है: सब व्‍यर्थ है, सब निस्‍सार है। निस्‍सन्‍देह सब कुछ व्‍यर्थ है!


तब मैंने अपने कामों पर विचार किया, मैंने उस परिश्रम पर भी सोचा जो मैंने उन कामों पर किया था। मुझे अनुभव हुआ कि यह सब निस्‍सार है− यह मानो हवा को पकड़ना है। इस सूर्य के नीचे धरती पर मनुष्‍य के काम और परिश्रम से कुछ लाभ नहीं।


मैंने अपने हृदय में कहा, “जो दशा मूर्ख की होती है, वही मेरी भी होगी। फिर मैं इतना बुद्धिमान क्‍यों हुआ?” अत: मैंने अपने हृदय में कहा, “मूर्ख होना, अथवा बुद्धिमान होना भी व्‍यर्थ है।”


मुझे जीवन से घृणा हो गई, क्‍योंकि आकाश के नीचे पृथ्‍वी पर किए जाने वाले सब कार्य मुझे बुरे लगने लगे। यह सब व्‍यर्थ है, यह मानो हवा को पकड़ना है।


कौन जानता है कि मेरा उत्तराधिकारी बुद्धिमान होगा अथवा मूर्ख? तो भी धरती पर वह मेरे समस्‍त परिश्रम के फल को भोगेगा और जो कुछ मैंने बुद्धि से संग्रह किया है वह उसका स्‍वामी होगा।


कभी ऐसा भी होता है कि मनुष्‍य बुद्धि, ज्ञान और कौशल से परिश्रम करता है किन्‍तु वह उसका फल उस व्यक्‍ति के द्वारा भोगने के लिए छोड़ जाता है, जिसने उसके लिए कुछ भी परिश्रम नहीं किया। यह भी व्‍यर्थ है और बहुत बुरा है।


सच पूछो तो उसके जीवन के सब दिन दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम सन्‍तोष नहीं, वरन् सन्‍ताप उत्‍पन्न करता है। रात में भी उसके मन को चैन नहीं मिलता। यह भी व्‍यर्थ है।


जिस मनुष्‍य से परमेश्‍वर प्रसन्न होता है वह उसी को बुद्धि, ज्ञान और आनन्‍द प्रदान करता है। पापी मनुष्‍य से परमेश्‍वर कठोर परिश्रम कराता है। पापी मनुष्‍य परमेश्‍वर के प्रिय व्यक्‍ति के लिए धन एकत्र करता और उसको संचित करता है। अत: यह भी व्‍यर्थ है, यह मानो हवा को पकड़ना है।


इनके अतिरिक्‍त मैंने राजाओं और प्रदेशों का सोना, चांदी और धन भी अपने पास इकट्ठा कर रखा था। मेरे दरबार में अनेक गायिकाएँ और गायक थे। मेरे पास पुरुष का दिल बहलानेवाली अनेक रखेल स्‍त्रियाँ भी थीं।


मनुष्‍य और पशु एक ही गति को प्राप्‍त होते हैं। जैसे पशु मरता है वैसे ही मनुष्‍य भी। उन सब में एक ही से प्राण हैं। मनुष्‍य पशु से श्रेष्‍ठ नहीं है। अत: सब व्‍यर्थ है।


उसके अनुगामियों कि संख्‍या, जिनका उसने नेतृत्‍व किया, अगणित थी। फिर भी आनेवाली पीढ़ी उससे प्रसन्न नहीं होगी। अत: निस्‍सन्‍देह यह भी व्‍यर्थ है, यह मानो हवा को पकड़ना है।


फिर मैंने देखा कि सब परिश्रम और सारा कार्यकौशल अपने पड़ोसी के प्रति शत्रु-भावना से किया जाता है। अत: यह भी व्‍यर्थ है, यह मानो हवा को पकड़ना है।


यद्यपि मनुष्‍य अकेला है, उसका पुत्र नहीं, भाई नहीं, तथापि वह निरन्‍तर कमाता ही जाता है, उसके परिश्रम का कोई अन्‍त नहीं। उसकी आंखें धन-सम्‍पत्ति से तृप्‍त नहीं होतीं। वह अपने आपसे कभी पूछता नहीं, “मैं यह सब परिश्रम किसके लिए कर रहा हूं, और क्‍यों स्‍वयं को सुख-चैन से वंचित कर रहा हूं?” यह भी व्‍यर्थ है, और एक दु:खद कार्य-व्‍यापार है।


पैसे से प्‍यार करनेवाला पैसे से कभी सन्‍तुष्‍ट नहीं होता; और न ही ऐसा व्यक्‍ति, जिसे धन से प्रेम है, उसके अधिकाधिक लाभ से सन्‍तुष्‍ट होता है। यह भी व्‍यर्थ है।


जीवन के विषय में जितना विचार करो, उतना ही वह निस्‍सार लगता है, तो ऐसे जीवन से मनुष्‍य को क्‍या लाभ?


यह सृष्‍टि तो इस संसार की असारता के अधीन हो गयी है—अपनी इच्‍छा से नहीं, बल्‍कि उसकी इच्‍छा से, जिसने उसे अधीन बनाया है—किन्‍तु यह आशा भी बनी रही


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