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श्रेष्ठगीत 4:10 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

10 ओ मेरी संगिनी, ओ मेरी दुलहन! तेरा प्‍यार कितना मीठा है, अंगूर से अधिक मधुर तेरा प्‍यार है।

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पवित्र बाइबल

10 मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन, तेरा प्रेम कितना सुन्दर है! तेरा प्रेम दाखमधु से अधिक उत्तम है; तेरी इत्र की सुगन्ध किसी भी सुगन्ध से उत्तम है!

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Hindi Holy Bible

10 हे मेरी बहिन, हे मेरी दुल्हिन, तेरा प्रेम क्या ही मनोहर है! तेरा प्रेम दाखमधु से क्या ही उत्तम है, और तेरे इत्रोंका सुगन्ध इस प्रकार के मसालों के सुगन्ध से!

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

10 हे मेरी बहिन, हे मेरी दुल्हिन, तेरा प्रेम क्या ही मनोहर है! तेरा प्रेम दाखमधु से क्या ही उत्तम है, और तेरे इत्रों का सुगन्ध सब प्रकार के मसालों के सुगन्ध से!

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सरल हिन्दी बाइबल

10 मेरी बहन, मेरी दुल्हिन, कैसा मनोहर है तुम्हारा प्रेम! दाखमधु से भी उत्तम है तुम्हारा प्रेम, तथा तुम्हारे ईत्रों की सुगंध भी उत्तमोत्तर है सभी मसालों की सुगंध से!

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019

10 हे मेरी बहन, हे मेरी दुल्हन, तेरा प्रेम क्या ही मनोहर है! तेरा प्रेम दाखमधु से क्या ही उत्तम है, और तेरे इत्रों का सुगन्ध सब प्रकार के मसालों के सुगन्ध से! (यूह. 4:10, यशा. 12:3)

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श्रेष्ठगीत 4:10
10 क्रॉस रेफरेंस  

‘जब महाराज अपने दीवान पर बैठे थे, मेरी जटामासी अपनी सुगन्‍ध बिखेर रही थी।


‘गन्‍धरस और लोबान से सुगन्‍धित, गन्‍धी के सब प्रकार के मसालों का लेप लगाये, धुएं के खम्‍भे-सा यह कौन निर्जन प्रदेश से आ रहा है?


‘ओ मेरी संगिनी, ओ मेरी दुलहन, तूने एक नजर में ही अपने कण्‍ठहार के एक ही हीरे से मेरा हृदय मोह लिया है।


मैं अपने प्रियतम के लिए द्वार खोलने के लिए उठी। मेरे हाथों से गन्‍धरस टपक रहा था, किल्‍ली के मूंठों पर मेरी अंगुलियों से तरल गन्‍धरस टपक रहा था।


‘ओ प्रियतमा, मनमोहनी! तू कितनी सुन्‍दर, सुकुमार कन्‍या है।


परन्‍तु पवित्र आत्‍मा का फल है : प्रेम, आनन्‍द, शान्‍ति, सहनशीलता, दयालुता, हितकामना, ईमानदारी,


अब मुझे पूर्ण राशि प्राप्‍त हो गई है; मैं सम्‍पन्न हूँ। इपफ्रोदितुस से आपकी भेजी हुई वस्‍तुएँ पा कर मैं समृद्ध हो गया हूँ। आप लोगों की यह भेंट एक मधुर सुगन्‍ध है, एक सुग्राह्य बलि है, जो परमेश्‍वर को प्रिय है।


जब मेमना पुस्‍तक ले चुका, तब चार प्राणी तथा चौबीस धर्मवृद्ध मेमने के सामने गिर पड़े। प्रत्‍येक धर्मवृद्ध के हाथ में वीणा थी और धूप से भरे स्‍वर्ण पात्र भी-ये सन्‍तों की प्रार्थनाएँ हैं।


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