राजा हिजकियाह ने पुरोहितों और उप-पुरोहितों को उनके सेवा-कार्य के अनुसार विभिन्न दलों में विभक्त कर दिया। उसने प्रत्येक पुरोहित और उप-पुरोहित को उसके सेवा-कार्य के अनुसार अग्नि-बलि, सहभागिता-बलि और धन्यवाद-बलि चढ़ाने, स्तुति-गान गाने तथा प्रभु के शिविर के द्वारों पर पहरा देने के लिए नियुक्त किया।
जब इस्राएल देश का शासक स्वेच्छा-बलि के रूप में प्रभु को अग्नि-बलि अथवा सहभागिता-बलि चढ़ाने की इच्छा करेगा तब पूर्वमुखी फाटक उसके लिए खोला जाएगा। जैसे वह विश्राम-दिवस पर अग्नि-बलि और सहभागिता-बलि चढ़ाता है वैसे ही वह स्वेच्छा-बलि के रूप में अग्नि-बलि अथवा सहभागिता-बलि चढ़ाएगा। तब वह फाटक से बाहर निकलेगा, और उसके निकलने के पश्चात् फाटक बन्द कर दिया जाएगा।
इस्राएल देश का शासक बाहर से फाटक के ओसारे के मार्ग से प्रवेश करेगा, और खंभे के पास खड़ा हो जाएगा। पुरोहित उसकी ओर से अग्नि-बलि और सहभागिता-बलि चढ़ाएंगे। वह फाटक की ड्योढ़ी पर ही आराधना कर लौट जाएगा। वह फाटक से बाहर निकल जाएगा, किन्तु फाटक शाम तक बन्द नहीं किया जाएगा।
‘यदि कोई व्यक्ति गाय-बैलों में से अग्नि-बलि चढ़ाता है, तो उसे निष्कलंक नर पशु चढ़ाना होगा। वह उसे मिलन-शिविर के द्वार पर चढ़ाएगा जिससे वह प्रभु के सम्मुख ग्रहण किया जाए।
जब कोई व्यक्ति मन्नत में अथवा स्वेच्छा-बलि के हेतु गाय-बैल या भेड़-बकरियों में से सहभागिता-बलि का पशु प्रभु को चढ़ाएगा, तब ग्राह्य बनने के लिए पशु निष्कलंक होना चाहिए। उसके शरीर पर कोई दोष नहीं होना चाहिए।
यदि उसके चढ़ावे का बलि-पशु, मन्नत-बलि अथवा स्वेच्छा-बलि का है तो जिस दिन वह अपनी बलि को चढ़ाता है, उसी दिन बलि-मांस खाया जाएगा। जो उसमें से बचेगा, वह दूसरे दिन खाया जाएगा।
तीसरे दिन सहभागिता-बलि के पशु का मांस खाने वाला, उसको चढ़ाने वाला व्यक्ति ग्रहण नहीं किया जाएगा, और न उसका फल ही उसको मिलेगा। यह अखाद्य वस्तु होगी। उसको खानेवाला व्यक्ति अपने अधर्म का भार स्वयं वहन करेगा।