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रोमियों 7:18 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

18 मैं जानता हूँ कि मुझ में, अर्थात् मेरे शारीरिक स्‍वभाव में, मसीह का निवास नहीं है; क्‍योंकि अच्‍छे कार्य करने की इच्‍छा तो मुझ में विद्यमान है, किन्‍तु उन्‍हें कार्यान्‍वित करने की शक्‍ति मुझमें नहीं है।

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पवित्र बाइबल

18 हाँ, मैं जानता हूँ कि मुझ में यानी मेरे भौतिक मानव शरीर में किसी अच्छी वस्तु का वास नहीं है। नेकी करने के इच्छा तो मुझ में है पर नेक काम मुझ से नहीं होते।

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Hindi Holy Bible

18 क्योंकि मैं जानता हूं, कि मुझ में अर्थात मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

18 क्योंकि मैं जानता हूँ कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती। इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते।

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नवीन हिंदी बाइबल

18 क्योंकि मैं जानता हूँ कि मुझमें, अर्थात् मेरे शरीर में कोई भली वस्तु वास नहीं करती। मुझमें इच्छा तो है परंतु मुझसे भले कार्य नहीं हो पाते;

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सरल हिन्दी बाइबल

18 यह तो मुझे मालूम है कि मुझमें अर्थात् मेरे शरीर में अंदर छिपा हुआ ऐसा कुछ भी नहीं, जो उत्तम हो. अभिलाषा तो मुझमें है किंतु उसका करना मुझसे हो नहीं पाता.

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रोमियों 7:18
31 क्रॉस रेफरेंस  

प्रभु ने देखा कि पृथ्‍वी पर मनुष्‍य का दुराचार बढ़ गया है, और उसके मन के सारे विचार निरन्‍तर बुराई के लिए ही होते हैं।


जब प्रभु को अग्‍निबलि की सुखद सुगन्‍ध मिली तब उसने अपने हृदय में कहा, ‘अब मैं मनुष्‍य के कारण भूमि को कभी शाप न दूंगा। बचपन से ही मनुष्‍य के मन के विचार बुराई के लिए होते हैं। जैसा मैंने अभी किया है वैसा जीवित प्राणियों का पुन: विनाश न करूंगा।


काश! अशुद्ध मनुष्‍यजाति में एक भी मनुष्‍य शुद्ध होता! पर नहीं, एक भी मनुष्‍य शुद्ध नहीं है।


तब क्‍या मनुष्‍य उसके सम्‍मुख धार्मिक सिद्ध हो सकता है? नारी से उत्‍पन्न मानव कदापि पवित्र नहीं हो सकता है!


प्रभु, तेरा हाथ मेरी सहायता के लिए तत्‍पर रहे; क्‍योंकि मैंने तेरे आदेशों को अपने लिए चुना है।


मैं भेड़ के समान मार्ग से भटक गया हूं; प्रभु, अपने सेवक को ढूंढ़; क्‍योंकि मैं तेरी आज्ञाओं को स्‍मरण रखता हूं।


जब तू मेरे हृदय को विशाल बनाएगा, तब मैं तेरी आज्ञाओं के मार्ग पर दौड़ूंगा।


मैं तेरे आदेशों की अभिलाषा करता हूं; मुझे अपनी धार्मिकता से पुनर्जीवित कर।


भला हो कि तेरी संविधियों का पालन करने के लिए मेरा आचरण दृढ़ हो जाए।


मैं अधर्म में उत्‍पन्न हुआ था; और पाप में मेरी मां ने मुझे गर्भ में धारण किया था।


हम-सब अशुद्ध व्यक्‍ति के समान हो गए हैं, हमारे सब धर्म-कर्म गन्‍दे वस्‍त्र हो गए हैं। हम-सब पत्ते के सदृश मुरझा जाते हैं। हमारे दुष्‍कर्म हवा की तरह हमें उड़ा ले जाते हैं।


क्‍योंकि बुरे विचार, हत्‍या, परस्‍त्री-गमन, व्‍यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्‍दा − ये सब मन से निकलते हैं।


बुरे होने पर भी यदि तुम अपने बच्‍चों को सहज ही अच्‍छी वस्‍तुएँ देते हो, तो स्‍वर्गिक पिता अपने माँगने वालों को पवित्र आत्‍मा क्‍यों नहीं देगा?”


जो शरीर से उत्‍पन्न होता है, वह शरीर है और जो आत्‍मा से उत्‍पन्न होता है, वह आत्‍मा है।


आप प्रभु येशु मसीह को धारण करें और शरीर की वासनाएँ तृप्‍त करने का विचार छोड़ दें।


मैं अपना ही आचरण नहीं समझता हूँ। क्‍योंकि मैं जो करना चाहता हूँ, वह नहीं, बल्‍कि वही करता हूँ, जिस से मैं घृणा करता हूँ।


मैं जो भलाई करना चाहता हूँ वह नहीं कर पाता, बल्‍कि मैं जो बुराई नहीं चाहता, वही कर डालता हूँ।


परमेश्‍वर ही! हमारे प्रभु येशु मसीह के द्वारा। परमेश्‍वर को धन्‍यवाद! सारांश यह, कि मैं अन्‍तर्मन से परमेश्‍वर के नियम का, किन्‍तु साथ ही साथ अपने शरीर से पाप के नियम का पालन करता हूँ।


जब हम अपने शारीरिक स्‍वाभाव के अधीन थे, तो व्‍यवस्‍था से बल पाकर पापमय वासनाएँ हमारे अंगों में क्रियाशील थीं और मृत्‍यु के फल उत्‍पन्न करती थीं।


शारीरिक स्‍वभाव तो पवित्र आत्‍मा के विरुद्ध इच्‍छा करता है, और पवित्र आत्‍मा शारीरिक स्‍वभाव के विरुद्ध। ये दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं। इसलिए आप जो चाहते हैं, वही नहीं कर पाते हैं।


जो लोग येशु मसीह के हैं, उन्‍होंने वासनाओं तथा कामनाओं सहित अपने शारीरिक स्‍वभाव को क्रूस पर चढ़ा दिया है।


परमेश्‍वर अपना प्रेमपूर्ण उद्देश्‍य पूरा करने के लिए आप लोगों में सद् इच्‍छा भी उत्‍पन्न करता और उसके अनुसार कार्य करने का बल भी प्रदान करता है।


मैं यह नहीं कहता कि मैं अब तक यह सब कर चुका हूँ अथवा मुझे पूर्णता प्राप्‍त हो गयी है; किन्‍तु मैं आगे बढ़ रहा हूँ ताकि वह लक्ष्य मेरी पकड़ में आये, जिसके लिए येशु मसीह ने मुझे अपने अधिकार में ले लिया है।


क्‍योंकि हम भी तो पहले नासमझ, अवज्ञाकारी, भटके हुए, हर प्रकार की वासनाओं और भोगों के वशीभूत थे। हम विद्वेष और ईष्‍र्या में जीवन बिताते थे। हम घृणित थे और एक दूसरे से बैर करते थे।


और उसे मानवीय वासनाओं के अनुसार नहीं, बल्‍कि परमेश्‍वर की इच्‍छानुसार अपना शेष जीवन बिताना चाहिए।


हमारे पर का पालन करें:

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