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योना 4:9 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

9 तब परमेश्‍वर ने योना से पूछा, ‘क्‍या यह उचित है कि तू अंडी के पेड़ के कारण नाराज हो?’ योना ने उत्तर दिया, ‘मेरा क्रोध उचित है। इसलिए मैं नाराज हूं। मैं मर जाना चाहता हूं।’

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पवित्र बाइबल

9 किन्तु परमेश्वर ने यहोवा से कहा, “बता, तेरे विचार में क्या सिर्फ इसलिए कि यह पौधा सूख गया है, तेरा क्रोध करना उचित है” योना ने उत्तर दिया, “हाँ मेरा क्रोध करना उचित ही है! मुझे इतना क्रोध आ रहा है कि जैसे बस मैं अपने प्राण ही दे दूँ!”

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Hindi Holy Bible

9 परमेश्वर ने योना से कहा, तेरा क्रोध, जो रेंड़ के पेड़ के कारण भड़का है, क्या वह उचित है? उसने कहा, हां, मेरा जो क्रोध भड़का है वह अच्छा ही है, वरन क्रोध के मारे मरना भी अच्छा होता।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

9 परमेश्‍वर ने योना से कहा, “तेरा क्रोध, जो रेंड़ के पेड़ के कारण भड़का है, क्या वह उचित है?” उसने कहा, “हाँ, मेरा जो क्रोध भड़का है वह अच्छा ही है, वरन् क्रोध के मारे मरना भी अच्छा होता।”

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सरल हिन्दी बाइबल

9 परंतु परमेश्वर ने योनाह से कहा, “क्या इस पौधे के बारे में तुम्हारा गुस्सा होना उचित है?” योनाह ने उत्तर दिया, “बिलकुल उचित है. मैं इतने गुस्से में हूं कि मेरी इच्छा है कि मैं मर जाऊं.”

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019

9 परमेश्वर ने योना से कहा, “तेरा क्रोध, जो रेंड़ के पेड़ के कारण भड़का है, क्या वह उचित है?” उसने कहा, “हाँ, मेरा जो क्रोध भड़का है वह अच्छा ही है, वरन् क्रोध के मारे मरना भी अच्छा होता।”

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योना 4:9
13 क्रॉस रेफरेंस  

अहाब उदास और अप्रसन्न हो गया; क्‍योंकि यिज्रएल-निवासी नाबोत ने उससे यह कहा था, ‘मैं अपने पूर्वजों की पैतृक भूमि आपको नहीं दूंगा।’ अहाब अपने महल में आया। वह अपने पलंग पर लेट गया। उसने अपना मुंह ढक लिया। उसने भोजन नहीं किया।


ओ अय्‍यूब, अपने ही क्रोध में स्‍वयं को चीरने-फाड़ने वाले! क्‍या तुम्‍हारे लिए पृथ्‍वी उजड़ जाएगी? क्‍या चट्टान अपने स्‍थान से हट जाएगी?


सावधान! कहीं क्रोध तुम्‍हें कुमार्ग पर न ले जाए! विमोचन का भारी मूल्‍य कहीं तुम्‍हें पथ-भ्रष्‍ट न कर दे!


निस्‍सन्‍देह क्रोध मूर्ख मनुष्‍य को मार डालता है; और मूढ़ आदमी ईष्‍र्या के कारण मर जाता है।


किन्‍तु योना को परमेश्‍वर का यह निर्णय बहुत बुरा लगा। वह प्रभु परमेश्‍वर से नाराज हो गया।


प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ‘तू उस अंडी के पेड़ के लिए दु:खित है जिसके लिए तूने कोई परिश्रम नहीं किया। तूने उसको न लगाया था और न बड़ा किया था। वह एक रात में उगा और दूसरी रात में नष्‍ट हो गया।


जब सूरज निकला तब परमेश्‍वर ने पूर्व दिशा से गरम हवा बहाई। योना के सिर पर सूरज की किरणें पड़ीं और वह बेहोश हो गया। योना मृत्‍यु की इच्‍छा करने लगा। उसने कहा, ‘मेरे लिए जीवित रहने की अपेक्षा मरना अच्‍छा है।’


और उन से बोले, “मैं अत्‍यन्‍त व्‍याकुल हूँ मानो मेरे प्राण निकल रहे हों! तुम यहाँ ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।”


क्‍योंकि जो दु:ख परमेश्‍वर की इच्‍छानुसार स्‍वीकार किया जाता, उसका परिणाम होता है हृदय-परिवर्तन तथा उद्धार। इसमें पछताना नहीं पड़ता। परन्‍तु सांसारिक दु:ख का परिणाम है मृत्‍यु।


उन दिनों मनुष्‍य मृत्‍यु की खोज करेंगे, किन्‍तु वह उन्‍हें नहीं मिलेगी, वे मरने की अभिलाषा करेंगे, किन्‍तु मृत्‍यु उन से भागती रहेगी।


दलीलाह प्रतिदिन उससे प्रश्‍न पूछती रही। उसने प्रश्‍न पूछ-पूछ कर उस पर दबाव डाला। यहाँ तक कि शिमशोन का नाक में दम आ गया।


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