यदि तू विश्राम-दिवस को अपवित्र नहीं करेगा, मेरे पवित्र दिवस पर अपना दैनिक काम-धन्धा नहीं करेगा, और विश्राम-दिवस को आनन्द-पर्व मानेगा, उसको प्रभु का पवित्र और सम्मानीय दिन समझेगा; यदि तू अपने मार्ग पर अपने मन के अनुरूप आचरण नहीं करेगा, अपना काम-काज नहीं करेगा, और न व्यर्थ बातों में उसको गुजारेगा और यों उसका सम्मान करेगा;
प्रभु ने यह कहा है: यदि तुम अपना जीवन बचाना चाहते हो तो मेरी बात पर ध्यान दो। विश्राम दिवस पर किसी प्रकार का बोझ मत उठाओ, और न ही उसको ढोते हुए यरूशलेम के प्रवेश-द्वारों से गुजरो।
‘किन्तु यदि तुम मेरा वचन नहीं सुनोगे, और विश्राम दिवस को पवित्र नहीं रखोगे; यदि विश्राम दिवस पर किसी प्रकार का बोझ उठा कर यरूशलेम के प्रवेश-द्वारों से प्रवेश करोगे, तो मैं उन द्वारों में आग लगा दूंगा, और यह आग यरूशलेम के महलों को भस्म कर देगी, और कभी नहीं बुझेगी।’
वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूख गया था। येशु पर दोष लगाने के लिए लोगों ने उनसे यह पूछा, “क्या विश्राम के दिन किसी रोगी को स्वस्थ करना व्यवस्था के अनुसार उचित है?”
सभागृह का अधिकारी रुष्ट हो गया, क्योंकि येशु ने विश्राम के दिन उस स्त्री को स्वस्थ किया था। वह लोगों से कहने लगा, “छ: दिन हैं, जिन में काम करना उचित है। इसलिए उन्हीं दिनों स्वस्थ होने के लिए आओ, विश्राम के दिन नहीं।”
यदि विश्राम-दिवस पर मनुष्य का खतना इसलिए किया जाता है कि मूसा का नियम भंग न हो, तो तुम लोग मुझ से इस बात पर क्यों रुष्ट हो कि मैंने विश्राम-दिवस पर एक मनुष्य को पूर्ण रूप से स्वस्थ किया?
इस पर कुछ फरीसियों ने कहा, “वह मनुष्य परमेश्वर के यहाँ से नहीं आया है; क्योंकि वह विश्राम-दिवस के नियम का पालन नहीं करता।” कुछ लोगों ने कहा, “पापी मनुष्य ऐसे आश्चर्यपूर्ण चिह्न कैसे दिखा सकता है?” इस तरह उनमें मतभेद हो गया।