हे स्वामी, केवल तू ही धार्मिक है, और हमारा सिर शर्म से झुका हुआ है। आज भी हम, यहूदा प्रदेश के निवासी, यरूशलेम नगर के रहने वाले, वस्तुत: समस्त इस्राएली कौम के लोग जो दूर और नजदीक के देशों में प्रवास कर रहे हैं, जहाँ तूने उनको अपने प्रति विश्वासघाती आचरण के कारण रहने को विवश किया है, शर्म के कारण अति लज्जित हैं।
‘यिर्मयाह, जब तू इन लोगों से ये बातें कहेगा, और वे तुझसे यह पूछेंगे, “प्रभु ने हमारे ऊपर यह महा विपत्ति ढाहने को क्यों कहा है? क्या हमने कोई अधर्म किया है? हम ने अपने प्रभु परमेश्वर के प्रति कौन-सा पाप किया है?”
जब मैं तुझको क्रोध, कोप और रोषपूर्ण चेतावनी के साथ दण्ड दूंगा, तब तू सब राष्ट्रों में घृणा, निन्दा, चेतावनी और अपमान का पात्र बन जाएगा। सुन, मैंने, तेरे प्रभु ने, यह कहा है।
फिर भी मैं उनमें से कुछ लोगों को तलवार, अकाल और महामारी से बच कर भागने दूंगा; क्योंकि मैं चाहता हूं कि जिन राष्ट्रों में जाकर वे बसेंगे उनमें वे अपने सब घृणित कार्यों को स्वीकार कर पश्चात्ताप करें, और इस सच्चाई का अनुभव करें कि मैं ही प्रभु हूं।’
उनके आचरण और व्यवहार को देखकर तुम्हें शान्ति मिलेगी, और तुम्हें मालूम होगा कि जो मैंने यरूशलेम नगर में किया है, उसका कोई कारण है।’ स्वामी-प्रभु की यही वाणी है।
इस्राएल के पड़ोसी राष्ट्र भी यह जान लेंगे कि इस्राएल के वंशज अपने अधर्म के कारण अपने देश से निष्कासित हुए थे, और बन्दी होकर विदेश गए थे। उन्होंने अपने प्रभु परमेश्वर से विश्वासघात किया था। अत: उसने उनसे मुंह फेर लिया, और उनको उनके बैरियों के हाथ में सौंप दिया था। उनके बैरियों ने उनको तलवार से मौत के घाट उतारा था।
और उसने उस नबूवत को पूरा भी किया। प्रभु ने वैसा ही किया जैसा उसने कहा था। आप लोगों ने प्रभु के विरुद्ध पाप किया, उसकी वाणी नहीं सुनी, इसलिए यह विपत्ति आप पर पड़ी।