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याकूब 4:1 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

1 आप लोगों में द्वेष और लड़ाई-झगड़ा कहां से आता है? क्‍या इसका कारण यह नहीं है कि आपकी वासनाएँ आप के अन्‍दर लड़ाई करती हैं?

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पवित्र बाइबल

1 तुम्हारे बीच लड़ाई-झगड़े क्यों होते हैं? क्या उनका कारण तुम्हारे अपने ही भीतर नहीं है? तुम्हारी वे भोग-विलासपूर्ण इच्छाएँ ही जो तुम्हारे भीतर निरन्तर द्वन्द्व करती रहती हैं, क्या उन्हीं से ये पैदा नहीं होते?

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Hindi Holy Bible

1 तुम में लड़ाइयां और झगड़े कहां से आ गए? क्या उन सुख-विलासों से नहीं जो तुम्हारे अंगों में लड़ते-भिड़ते हैं?

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

1 तुम में लड़ाइयाँ और झगड़े कहाँ से आ गए? क्या उन सुख–विलासों से नहीं जो तुम्हारे अंगों में लड़ते–भिड़ते हैं?

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नवीन हिंदी बाइबल

1 तुम्हारे बीच में लड़ाइयाँ और झगड़े कहाँ से आए? क्या यह उन लालसाओं के कारण नहीं जो तुम्हारे अंगों में लड़ती रहती हैं?

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सरल हिन्दी बाइबल

1 तुम्हारे बीच लड़ाई व झगड़े का कारण क्या है? क्या तुम्हारे सुख-विलास ही नहीं, जो तुम्हारे अंगों से लड़ते रहते हैं?

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याकूब 4:1
24 क्रॉस रेफरेंस  

प्रिय भाइयो एवं बहिनो, आप परदेशी और प्रवासी हैं, इसलिए मैं आप से अनुरोध करता हूँ कि आप अपनी शारीरिक वासनाओं का दमन करें, जो आत्‍मा के विरुद्ध संघर्ष करती हैं।


शारीरिक स्‍वभाव तो पवित्र आत्‍मा के विरुद्ध इच्‍छा करता है, और पवित्र आत्‍मा शारीरिक स्‍वभाव के विरुद्ध। ये दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं। इसलिए आप जो चाहते हैं, वही नहीं कर पाते हैं।


किन्‍तु मैं अपने शरीर के अंगों में एक अन्‍य व्‍यवस्‍था का अनुभव करता हूँ, जो मेरे अन्‍तर्मन के नियम से संघर्ष करती है और मुझे पाप के उस नियम के अधीन करती है, जो मेरे अंगों में विद्यमान है।


क्‍योंकि शारीरिक आचरण की चिन्‍ता करना परमेश्‍वर के प्रतिकूल है। यह शारीरिक चिन्‍ता परमेश्‍वर के नियम के अधीन नहीं होती और हो भी नहीं सकती।


जो प्रलोभन में पड़ता है, वह अपनी ही वासना द्वारा खींचा और बहकाया जाता है।


‘मनुष्‍य का हृदय छल-कपट से भरा होता है, निस्‍सन्‍देह वह सब से अधिक भ्रष्‍ट होता है। मनुष्‍य के हृदय को कौन समझ सकता है?


आप आज्ञाकारी सन्‍तान बन कर अपनी वासनाओं के अनुसार आचरण नहीं करें, जैसा कि पहले किया करते थे जब आप लोगों को ज्ञान नहीं मिला था।


इसलिए आप लोग अपने शरीर में इन बातों को निर्जीव करें जो संसार की हैं, अर्थात् व्‍यभिचार, अशुद्धता, कामुकता, विषयवासना और लोभ को जो मूर्तिपूजा के सदृश है।


आप लोग सर्वप्रथम यह जान लें कि अन्‍तिम दिनों में उपहास करने वाले धर्मनिन्‍दक आयेंगे। वे अपनी दुर्वासनाओं के अनुरूप आचरण करेंगे


जब आप मांगते भी हैं, तो इसलिए नहीं पाते कि अच्‍छी तरह प्रार्थना नहीं करते। आप अपनी वासनाओं की तृप्‍ति के लिए प्रार्थना करते हैं।


जो लोग अभी-अभी भ्रान्‍ति का जीवन बिताने वालों से अलग हुए हैं, वे उन्‍हें व्‍यर्थ शब्‍दाडम्‍बर और शरीर की घृणित वासनाओं द्वारा लुभाते हैं।


क्‍योंकि हम भी तो पहले नासमझ, अवज्ञाकारी, भटके हुए, हर प्रकार की वासनाओं और भोगों के वशीभूत थे। हम विद्वेष और ईष्‍र्या में जीवन बिताते थे। हम घृणित थे और एक दूसरे से बैर करते थे।


निरर्थक विवादों, वंशावलियों, दलबन्‍दी और व्‍यवस्‍था सम्‍बन्‍धी झगड़ों से दूर रहो। यह सब अलाभकर और व्‍यर्थ है।


जब हम अपने शारीरिक स्‍वाभाव के अधीन थे, तो व्‍यवस्‍था से बल पाकर पापमय वासनाएँ हमारे अंगों में क्रियाशील थीं और मृत्‍यु के फल उत्‍पन्न करती थीं।


क्‍योंकि बुरे विचार, हत्‍या, परस्‍त्री-गमन, व्‍यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्‍दा − ये सब मन से निकलते हैं।


“तुम तो अपने पिता शैतान से हो और अपने पिता की इच्‍छा पूरी करना चाहते हो। वह तो प्रारम्‍भ से ही हत्‍यारा था। वह सत्‍य पर स्‍थिर नहीं रहता, क्‍योंकि उसमें सत्‍य है ही नहीं। जब वह झूठ बोलता है, तो अपने ही स्‍वभाव के अनुसार बोलता है; क्‍योंकि वह झूठा है और झूठ का पिता है।


निरर्थक तथा ऊटपटांग विवादों से अलग रहो। तुम जानते हो कि इन से झगड़ा पैदा होता है


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