कमरे ऊपर की मंजिलों की ओर क्रमश: चौड़े होते गए थे, क्योंकि मन्दिर की दीवारों के मोड़ भी ऊपर की मन्जिल की ओर क्रमश: चौड़े होते गए थे। मोड़ों की चौड़ाई और कमरों की चौड़ाई समान अनुपात में थी। मन्दिर के एक ओर जीना था, जो ऊपर की ओर गया था। उसी से होकर कोई भी व्यक्ति नीचे की मंजिल से दूसरी, तीसरी मंजिल पर जा सकता था।
फिर उसने आंगन के सामने पश्चिमी भवन की तथा उसके दोनों ओर की दीवारों की चौड़ाई नापी। वह भी पचास मीटर निकली। मन्दिर के अन्तर्गृह, मध्यभाग और बाहरी ड्योढ़ी
कमरे तीनों मंजिलों पर थे, लेकिन बाहरी आंगन के भवनों के समान उनके खम्भे नहीं थे। इसलिए ऊपर के कमरे निचली और मध्यवर्ती मंजिलों के कमरों से छोटे थे, और पीछे हटकर बने थे।