प्रभु यों कहता है : ‘अब तू उस दिन की प्रतीक्षा कर, जब मैं तेरे विरुद्ध स्वयं गवाह के रूप में खड़ा होऊंगा। मैंने यह निर्णय किया है: मैं राष्ट्रों को एकत्र करूंगा, मैं राज्यों को इकट्ठा करूंगा; मैं उन पर अपना क्रोध उण्डेलूंगा; उन पर अपनी क्रोधाग्नि बरसाऊंगा। मेरी ईष्र्या की अग्नि से समस्त पृथ्वी भस्म हो जाएगी।
मैंने स्वर्ग में से एक और महान एवं आश्चर्यजनक चिह्न देखा। सात स्वर्गदूत सात विपत्तियाँ लिये थे। ये अन्तिम विपत्तियाँ हैं, क्योंकि इनके द्वारा परमेश्वर का क्रोध पूरा हो जाता है।
प्रभु, अपने क्रोध का प्याला उन राष्ट्रों पर उण्डेल, जो तुझे नहीं जानते हैं; उन कौमों पर जो तेरी आराधना नहीं करती हैं, प्रभु, अपने क्रोध का प्याला उण्डेल! उन्होंने याकूब को निगल लिया है, उन्होंने उसके वंशजों को खा लिया है, पृथ्वी की सतह से उसको मिटा डाला है, उन्होंने याकूब के निवास-स्थान को उजाड़ दिया है।
फिर उसने लिपिक से कहा, जो सूती वस्त्र पहिने हुए था, ‘देख, करूबों के नीचे पहिए घूम रहे हैं। तू उनके बीच जा, और करूबों के मध्य से दोनों मुिट्ठयों में जलते हुए अंगारे उठा ला, और उनको यरूशलेम नगर के ऊपर बिखेर दे।’ वह मेरी आंखों के सामने भीतर गया।
एक और स्वर्गदूत ने, जिसे अग्नि पर अधिकार था, वेदी पर से आ कर ऊंचे स्वर से उस स्वर्गदूत से कहा, जो पैना हँसिया लिये था, “अपना पैना हँसिया चला कर पृथ्वी की दाखबारी के गुच्छे बटोर लीजिए, क्योंकि उसके अंगूर पक चुके हैं।”
एक अन्य स्वर्गदूत मन्दिर से निकला और ऊंचे स्वर से पुकारते हुए बादल पर बैठनेवाले से बोला, “अपना हँसिया चला कर लुनिए, क्योंकि कटनी का समय आ गया है और पृथ्वी की फ़सल पक चुकी है।”
अब, जा और अमालेकी जाति को नष्ट कर दे। उसकी समस्त माल-सम्पत्ति निषिद्ध समझकर पूर्णत: नष्ट कर देना। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध, दूध पीने वाले बच्चे, गाय-बैल, भेड़-बकरी, ऊंट-गधे, इन सब का वध कर देना। इनमें से किसी को जीवित मत रहने देना।’
प्रभु ने तुम्हें एक विशेष कार्य करने के लिए भेजा था। उसने कहा था, “जा, और पापी अमालेकियों को पूर्णत: नष्ट कर दे! उनसे युद्ध करता रह, जब तक वे समाप्त नहीं हो जाते!”
अत: मैंने अपनी क्रोधाग्नि उन पर उण्डेल दी। मैंने अपने क्रोध की ज्वाला से उनको भस्म कर दिया। मैंने उनके आचरण का प्रतिफल उन्हीं के सिर पर लौटा दिया।’ स्वामी-प्रभु की यही वाणी है।
तब स्वर्ग में परमेश्वर का मन्दिर खुल गया और मन्दिर में परमेश्वर के विधान की मंजूषा दिखाई पड़ी। बिजलियाँ, वाणियाँ एवं मेघगर्जन उत्पन्न हुए, भूकम्प हुआ और भारी ओला-वृष्टि हुई।