तब राजा योशियाह मंच पर खड़ा हुआ। उसने प्रभु के साथ यह विधान स्थापित किया, कि वह प्रभु का अनुसरण करेगा, अपने सम्पूर्ण हृदय और सम्पूर्ण प्राण से उसकी आज्ञाओं, सािक्षयों तथा संविधियों का पालन करेगा। वह इस विधान की पुस्तक में लिखे गए वचनों पर दृढ़ रहेगा। समस्त जनता ने भी प्रतिज्ञा की, कि वह विधान का पालन करेगी।
इसलिए आइए, हम अपने परमेश्वर से प्रतिज्ञा करें और आपके तथा परमेश्वर की आज्ञा के प्रति श्रद्धा-भक्ति रखने वालों के परामर्श के अनुसार इन विदेशी पत्नियों और उनकी सन्तान को अपने समाज से निकाल दें। यह कार्य व्यवस्था के अनुसार किया जाए।
राज्यपाल ने उनसे कहा, “जब तक पुरोहित ऊरीम और तुम्मीम के माध्यम से परमेश्वर की इच्छा न जान ले, तब तक आप लोग मन्दिर का परम पवित्र भोजन नहीं खाएंगे।’
राज्यपाल ने उनसे कहा, ‘जब तक पुरोहित ऊरीम और तुम्मीम के माध्यम से परमेश्वर की इच्छा न जान ले तब तक आप लोग मन्दिर का परम पवित्र भोजन नहीं खा सकेंगे।’
इस्राएली पितृकुलों के मुखियों ने निर्माण-कार्य के लिए भेंट चढ़ाई। राज्यपाल ने एक हजार स्वर्ण मुद्राएं, पचास पात्र और पुरोहितों के लिए पांच सौ तीस पोशाकें मन्दिर के कोष में दीं।
जब लोगों ने व्यवस्था के शब्द सुने तब वे रोने लगे। राज्यपाल नहेम्याह, पुरोहित एवं शास्त्री एज्रा तथा समाज के धर्म-शिक्षक उपपुरोहितों ने समस्त इस्राएली जन-समूह से कहा, ‘आज का दिन हमारे प्रभु परमेश्वर के लिए पवित्र है; इसलिए शोक मत मनाओ, और न रोओ।’
‘इन सब बातों के कारण हम तेरे साथ सुदृढ़ व्यवस्थान स्थापित करते हैं। हम उसको लिख देते हैं; और उस पर हमारे शासक, उपपुरोहित और पुरोहित हस्ताक्षर करेंगे।’