4 फिर उस ढंढोरची ने, जो राजा की घोषनाएँ प्रसारित किया करता था, ऊँचे स्वर में कहा, “सुनों, सुनों, अरे ओ अलग अलग जातियों और भाषा समूह के लोगों! तुम्हें जो करने की आज्ञा दी गयी है, वह यह है,
तीसरे महीने अर्थात् सीवान महीने की तेईसवीं तारीख थी। उसी दिन सम्राट के सचिव बुलाए गए। उन्होंने मोरदकय के निर्देश के अनुसार यहूदियों के सम्बन्ध में भारतवर्ष से इथियोपिआ देश तक − एक सौ सत्ताईस प्रदेशों के शासकों, क्षत्रपों और राज्यपालों को राजाज्ञा लिखी। यह राजाज्ञा प्रत्येक राष्ट्र की भाषा तथा उसकी लिपि में लिखी गई। इनके अतिरिक्त यह राजाज्ञा यहूदियों की भाषा और लिपि में भी लिखी गई।
ओ सियोन को शुभ सन्देश सुनानेवाली, ऊंचे पर्वत पर चढ़कर सन्देश सुना! ओ यरूशलेम को शुभ सन्देश सुनानेवाली, बल्पूर्वक उच्च स्वर में सुना! मत डर, ऊंची आवाज में सुना। यहूदा प्रदेश के नगरों में यह प्रचार कर, “देखो! तुम्हारा परमेश्वर!”
महाराज, आपने राजाज्ञा दी थी कि प्रत्येक व्यक्ति नरसिंगे, बांसुरी, वीणा, सारंगी, सितार, शहनाई तथा अन्य सब प्रकार के वाद्ययन्त्रों का स्वर सुनते ही स्वर्ण-मूर्ति के सम्मुख गिर कर उसके प्रति सम्मान प्रकट करेगा;
अत: सम्राट के आदेशानुसार बेबीलोन साम्राज्य के सब प्रदेशों के क्षत्रप, हाकिम, राज्यपाल, मंत्री, खजांची, न्यायाधीश, दंडाधिकारी तथा अन्य उच्चाधिकारी अपने महाराज द्वारा स्थापित स्वर्ण-मूर्ति के प्रतिष्ठान पर्व पर उपस्थित होने के उद्देश्य से एकत्र हुए। वे मूर्ति के सम्मुख खड़े हुए।
अत: विश्व की भिन्न-भिन्न कौमों, राष्ट्रों और भाषाओं के लोगों ने ऐसा ही किया। उन्होंने जिस क्षण नरसिंगे, बांसुरी, वीणा, सारंगी, सितार, शहनाई तथा अन्य सब प्रकार के वाद्ययंत्रों का स्वर सुना, वे तत्काल राजा नबूकदनेस्सर द्वारा स्थापित स्वर्ण-मूर्ति के सम्मुख गिरे, और यों उन्होंने मूर्ति के प्रति सम्मान प्रकट किया।
उसने उच्च स्वर में पुकारा, और यह कहा, “इस वृक्ष को काट डालो, और इसकी शाखाओं को छांट दो। इसकी पत्तियों को झड़ा दो, और इसके फल बिखेर दो। इसकी छांव में बैठे हुए वनपशुओं को भगा दो। इसकी शाखाओं में बसेरा करनेवाले पक्षियों को उड़ा दो।
सम्राट दारा ने अपने साम्राज्य के अन्तर्गत पृथ्वी की सब कौमों, राष्ट्रों और भाषाओं के लोगों को यह परिपत्र लिखा : ‘तुम्हारी सुख-समृद्धि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़े!
ओ यहूदा कुल! तूने राजा ओमरी की संविधियों को माना, तूने अहाब के राजवंश के कार्यों के अनुरूप कार्य किया। तूने उनके परामर्श के अनुसार आचरण किया। अत: मैं तुझे उजाड़ दूंगा। तेरे नागरिकों को उपहास का पात्र बना दूंगा। तू अन्य कौमों की निन्दा सहेगा।’
वे यह कहते हुए एक नया गीत गा रहे थे : “तू पुस्तक ग्रहण कर उसकी मोहरें खोलने योग्य है, क्योंकि तू वध किया गया था। और तूने अपना रक्त बहा कर परमेश्वर के लिए प्रत्येक कुल, भाषा, प्रजाति और राष्ट्र से मनुष्यों को ख़रीद लिया।