2 उसके बाद उसने अपने साम्राज्य के सब प्रदेशों के क्षत्रपों, हाकिमों, राज्यपालों, मंत्रियों, खजांचियों, न्यायाधीशों, दंडाधिकारियों तथा प्रदेशों के सब उच्चाधिकारियों के पास सन्देश भेजा कि वे महाराज नबूकदनेस्सर द्वारा स्थापित स्वर्ण-मूर्ति के प्रतिष्ठान के अवसर पर उपस्थित हों।
2 और फिर राजा ने प्रांत के राज्यपालों, मखियाओं, अधिपतियों, सलाहकारों, खजांचियों, न्यायाधीशों, शासकों तथा दूसरे सभी क्षेत्रीय अधिकारियों को अपने राज्य में आकर इकट्ठा होने के लिये बुलावा भेजा। राजा चाहता था कि वे सभी लोग प्रतिमा के प्रतिष्ठा महोत्सव में सम्मिलित हों।
2 तब नबूकदनेस्सर राजा ने अधिपतियों, हाकिमों, गवर्नरों, जजों, खजांनचियों, न्यायियों, शास्त्रियों, आदि प्रान्त-प्रान्त के सब अधिकारियों को बुलवा भेजा कि वे उस मूरत की प्रतिष्ठा में आएं जो उसने खड़ी कराई थी।
2 तब नबूकदनेस्सर राजा ने अधिपतियों, हाकिमों, गवर्नरों, जजों, खजानचियों, न्यायियों, शास्त्रियों आदि प्रान्त–प्रान्त के सब अधिकारियों को बुलवा भेजा कि वे उस मूरत की प्रतिष्ठा में आएँ जो उस ने खड़ी कराई थी।
2 तब उसने हाकिमों, प्रधानों, राज्यपालों, सलाहकारों, ख़ज़ांचियों, न्यायाधीशों, जिलाधीशों और राज्य के दूसरे सब अधिकारियों को बुलवाया कि वे आकर उस मूर्ति के प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हों जिसे उसने स्थापित किया था.
2 तब नबूकदनेस्सर राजा ने अधिपतियों, हाकिमों, राज्यपालों, सलाहकारों, खजांचियों, न्यायियों, शास्त्रियों, आदि प्रान्त-प्रान्त के सब अधिकारियों को बुलवा भेजा कि वे उस मूरत की प्रतिष्ठा में आएँ जो उसने खड़ी कराई थी।
यारोबआम ने आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन एक यात्रा पर्व प्रतिष्ठित किया, जैसा यहूदा प्रदेश में मनाया जाता था। तत्पश्चात् उसने वेदी पर बलि चढ़ाई। ऐसा ही उसने बेत-एल नगर में किया। उसने स्वनिर्मित बछड़े की प्रतिमाओं को बलि चढ़ाई। उसने बेत-एल में पहाड़ी शिखर की वेदियों के लिए, जिनको उसने निर्मित किया था, पुरोहित नियुक्त किए।
क्षत्रप, हाकिम, राज्यपाल और राज-मंत्री एकत्र हो गए। उन्होंने देखा कि उन तीनों व्यक्तियों के शरीर पर आग का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा था। उनके सिर का एक बाल भी नहीं झुलसा था, उनके पायजामे ज्यों के त्यों थे। उनके शरीर से जलने की गंध तक नहीं आ रही थी।
अत: सम्राट के आदेशानुसार बेबीलोन साम्राज्य के सब प्रदेशों के क्षत्रप, हाकिम, राज्यपाल, मंत्री, खजांची, न्यायाधीश, दंडाधिकारी तथा अन्य उच्चाधिकारी अपने महाराज द्वारा स्थापित स्वर्ण-मूर्ति के प्रतिष्ठान पर्व पर उपस्थित होने के उद्देश्य से एकत्र हुए। वे मूर्ति के सम्मुख खड़े हुए।
पलिश्ती सामंत अपने देवता दागोन को महाबलि चढ़ाने और आनन्द मनाने के लिए एकत्र हुए। वे यह कहते थे, ‘हमारे देवता ने, हमारे हाथों में दिया है शिमशोन, शत्रु हमारा’