तीसरे महीने अर्थात् सीवान महीने की तेईसवीं तारीख थी। उसी दिन सम्राट के सचिव बुलाए गए। उन्होंने मोरदकय के निर्देश के अनुसार यहूदियों के सम्बन्ध में भारतवर्ष से इथियोपिआ देश तक − एक सौ सत्ताईस प्रदेशों के शासकों, क्षत्रपों और राज्यपालों को राजाज्ञा लिखी। यह राजाज्ञा प्रत्येक राष्ट्र की भाषा तथा उसकी लिपि में लिखी गई। इनके अतिरिक्त यह राजाज्ञा यहूदियों की भाषा और लिपि में भी लिखी गई।
महाराज अपने साम्राज्य के सब प्रदेशों में उच्चाधिकारी नियुक्त करें जो सुन्दर कुंवारी कन्याओं को शूशनगढ़ के रनिवास में लाएंगे और उनको महाराज की रानियों के प्रबन्धक खोजा हेगय को सौंप देंगे। कन्याओं को शृंगार का सामान दिया जाए।
कुछ दिनों के पश्चात्, जब सम्राट क्षयर्ष का क्रोध शान्त हुआ तब उसको रानी वशती की याद आई। उसको स्मरण हुआ कि रानी वशती ने क्या अपराध किया था, और उसके विरुद्ध कौन-सी राजाज्ञा प्रसारित की गई थी।
एस्तर मोरदकय के चाचा अबीहइल की बेटी थी। मोरदकय ने उसको गोद लिया था और उसको अपनी बेटी की तरह पाला था। जब उसकी बारी आई तब उसने अपनी ओर से रनिवास से कुछ भी ले जाना अस्वीकार कर दिया। वह केवल वे ही वस्तुएं ले गई जिनको ले जाने की सलाह राज-खोजा हेगय ने दी थी। जिस-जिस व्यक्ति ने एस्तर को देखा उसने उसको पसन्द किया।
सम्राट ने अन्य स्त्रियों से अधिक एस्तर को प्यार किया; और एस्तर ने सब कन्याओं से अधिक सम्राट की कृपा-दृष्टि प्राप्त की। सम्राट उससे यहाँ तक प्रसन्न हो गया कि उसने उसके सिर पर राजमुकुट पहिना दिया, और उसको वशती के स्थान पर रानी बना दिया।