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इफिसियों 4:16 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

16 और उनसे समस्‍त देह को बल मिलता है। तब देह अपनी सब सन्‍धियों द्वारा सुसंघटित हो कर प्रत्‍येक अंग की समुचित सक्रियता से अपनी परिपूर्णता तक पहुंचती और प्रेम द्वारा अपना निर्माण करती है।

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पवित्र बाइबल

16 जिस पर समूची देह निर्भर करती है। यह देह उससे जुड़ती हुई प्रत्येक सहायक नस से संयुक्त होती है और जब इसका हर अंग जो काम उसे करना चाहिए, उसे पूरा करता है तो प्रेम के साथ समूची देह का विकास होता है और यह देह स्वयं सुदृढ़ होती है।

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Hindi Holy Bible

16 जिस से सारी देह हर एक जोड़ की सहायता से एक साथ मिलकर, और एक साथ गठकर उस प्रभाव के अनुसार जो हर एक भाग के परिमाण से उस में होता है, अपने आप को बढ़ाती है, कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए॥

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

16 जिससे सारी देह, हर एक जोड़ की सहायता से एक साथ मिलकर और एक साथ गठकर, उस प्रभाव के अनुसार जो हर एक अंग के ठीक–ठीक कार्य करने के द्वारा उस में होता है, अपने आप को बढ़ाती है कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए।

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नवीन हिंदी बाइबल

16 जिसके द्वारा सारी देह प्रत्येक जोड़ की सहायता से एक साथ जुड़ती और सुगठित होती है, और हर एक अंग के अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करने से देह का विकास होता है, और प्रेम में स्वयं उसकी उन्‍नति होती है।

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सरल हिन्दी बाइबल

16 जिनके द्वारा सारा शरीर जोड़ों द्वारा गठकर और एक साथ मिलकर प्रेम में विकसित होता जाता है क्योंकि हर एक अंग अपना तय किया गया काम ठीक-ठाक करता जाता है.

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इफिसियों 4:16
28 क्रॉस रेफरेंस  

“मैं दाखलता हूँ और तुम डालियाँ हो। जो मुझ में रहता है और मैं उस में, वह बहुत फलता है; क्‍योंकि मुझ से अलग रह कर तुम कुछ भी नहीं रह सकते।


जिस प्रकार हमारे एक शरीर में अनेक अंग होते हैं और सब अंगों का कार्य एक नहीं होता,


रोटी तो एक ही है, इसलिए अनेक होने पर भी हम एक देह हैं। क्‍योंकि हम सब एक ही रोटी के सहभागी हैं।


अभी तो विश्‍वास, आशा और प्रेम-ये तीनों बने हुए हैं। किन्‍तु इन में से प्रेम ही सब से महान है।


अब मूर्तियों को अर्पित मांस के विषय में। इसके संबंध में हम सब को ज्ञान प्राप्‍त है-यह मानी हुई बात है; किन्‍तु वह ‘ज्ञान’ मनुष्‍य को अहंकारी बनाता है, जब कि प्रेम निर्माण करता है।


परन्‍तु पवित्र आत्‍मा का फल है : प्रेम, आनन्‍द, शान्‍ति, सहनशीलता, दयालुता, हितकामना, ईमानदारी,


यदि हम येशु मसीह से संयुक्‍त हैं, तो न तो खतने का कोई महत्व है और न उसके अभाव का। महत्‍व विश्‍वास का है, जो प्रेम द्वारा क्रियाशील होता है।


उसने संसार की सृष्‍टि से पहले मसीह में हम को चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्‍त हो कर उसकी दृष्‍टि में पवित्र तथा निष्‍कलंक बनें।


जिससे विश्‍वास द्वारा मसीह आपके हृदय में निवास करें, प्रेम में आपकी जड़ें गहरी हों और नींव सुदृढ़ हो।


परमेश्‍वर ने अपने सामर्थ्य के प्रभाव से मुझे यह कृपा प्रदान की कि मैं उस शुभसमाचार का सेवक बनूँ।


इस प्रकार उन्‍होंने सेवा-कार्य के लिए सन्‍तों को योग्‍य बनाया, जिससे मसीह की देह का निर्माण उस समय तक होता रहे,


हम प्रेमपूर्वक सत्‍य का अनुसरण करें, और मसीह में सब प्रकार की उन्नति करते जाएं। मसीह ही कलीसिया का शीर्ष हैं


परमेश्‍वर से मेरी प्रार्थना यह है कि आपका प्रेम, ज्ञान में तथा हर प्रकार की अन्‍तर्दृष्‍टि में, उत्तरोत्तर बढ़ता जाये,


और इस प्रकार शीर्ष अर्थात् मसीह से संयुक्‍त नहीं रह पाते। मसीह वह शीर्ष हैं जिससे समस्‍त शरीर सन्‍धियों और स्‍नायुओं द्वारा पोषित और संगठित हो कर परमेश्‍वर की इच्‍छानुसार बढ़ता है।


जिससे वे हिम्‍मत न हारें, प्रेम की एकता में बँधे रहें, सुनिश्‍चित अन्‍तर्ज्ञान की परिपूर्णता प्राप्‍त करें और इस प्रकार परमेश्‍वर के रहस्‍य के मर्म तक पहुँच जायें। वह रहस्‍य स्‍वयं मसीह है,


हम इसलिए निरन्‍तर परमेश्‍वर को धन्‍यवाद देते हैं कि जब आपने हम से परमेश्‍वर का सन्‍देश सुना और ग्रहण किया, तो आपने उसे मनुष्‍यों का वचन नहीं, बल्‍कि- जैसा कि वह वास्‍तव में है- परमेश्‍वर का वचन समझ कर स्‍वीकार किया और यह वचन अब आप विश्‍वासियों में क्रियाशील है।


प्रभु ऐसा करें कि जिस तरह हम आप लोगों को प्‍यार करते हैं, उसी तरह आपका प्रेम एक दूसरे के प्रति सब के प्रति बढ़ता और उमड़ता रहे।


भाइयो और बहिनो! आप लोगों के विषय में परमेश्‍वर को निरन्‍तर धन्‍यवाद देना हमारा उचित कर्त्तव्‍य है; क्‍योंकि आपका विश्‍वास बहुत अच्‍छी तरह फल-फूल रहा है और आप-सब का एक दूसरे के प्रति प्रेम बढ़ रहा है।


इस आदेश का लक्ष्य वह प्रेम है, जो शुद्ध हृदय, निर्दोष अन्‍त:करण और निष्‍कपट विश्‍वास से उत्‍पन्न होता है।


आप लोगों ने आज्ञाकारी बन कर सत्‍य को स्‍वीकार किया और इस प्रकार निष्‍कपट भ्रातृप्रेम के लिए अपनी आत्‍मा को पवित्र कर लिया है; इसलिए अब आप लोगों को शुद्ध हृदय और सच्‍ची लगन से एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए।


इस प्रकार हम अपने प्रति परमेश्‍वर का प्रेम जान गये और इस में विश्‍वास करते हैं। परमेश्‍वर प्रेम है और जो प्रेम में बना रहता है, वह परमेश्‍वर में और परमेश्‍वर उस में निवास करता है।


हमारे पर का पालन करें:

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