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अय्यूब 7:1 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

1 ‘मनुष्‍य के जीवन की नियति क्‍या है? पृथ्‍वी पर कठोर श्रम! उसका जीवन मजदूर का जीवन है!

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पवित्र बाइबल

1 अय्यूब ने कहा, “मनुष्य को धरती पर कठिन संघर्ष करना पड़ता है। उसका जीवन भाड़े के श्रमिक के जीवन जैसा होता है।

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Hindi Holy Bible

1 क्या मनुष्य को पृथ्वी पर कठिन सेवा करनी नहीं पड़ती? क्या उसके दिन मजदूर के से नहीं होते?

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

1 “क्या मनुष्य को पृथ्वी पर कठिन सेवा करनी नहीं पड़ती? क्या उसके दिन मजदूर के से नहीं होते?

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सरल हिन्दी बाइबल

1 “क्या ऐहिक जीवन में मनुष्य श्रम करने के लिए बंधा नहीं है? क्या उसका जीवनकाल मज़दूर समान नहीं है?

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019

1 “क्या मनुष्य को पृथ्वी पर कठिन सेवा करनी नहीं पड़ती? क्या उसके दिन मजदूर के से नहीं होते? (अय्यू. 14:5,13,14)

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अय्यूब 7:1
16 क्रॉस रेफरेंस  

“हे प्रभु, मेरा अन्‍त मुझे बता दे। मेरे जीवन-काल की सीमा क्‍या है? मुझे बता दे कि मेरा जीवन कितना क्षणभंगुर है।


जैसे चिनगारियाँ सदा ऊपर ही उड़ती हैं, वैसे ही मनुष्‍य दु:ख भोगने के लिए जन्‍म लेता है।


यरूशलेम के हृदय से बात करो, उसको बताओ कि उसके निष्‍कासन के दिन पूरे हो गए; उसके अधर्म का मूल्‍य चुका दिया गया; उसे मुझ-प्रभु के हाथ से अपने पापों का दुगना दण्‍ड प्राप्‍त हो चुका है।”


स्‍वामी ने मुझ से यों कहा है : “अनुबन्‍धी मजदूर के वर्षों के हिसाब से एक ही वर्ष में केदार के समस्‍त राज-वैभव का अन्‍त हो जाएगा।


ऐसा कौन मनुष्‍य है जिसका वश प्राण पर चले, और वह प्राण के निकलते समय उसको रोक ले? मृत्‍यु के दिन पर मरनेवाले का अधिकार नहीं होता। युद्ध से छुटकारा नहीं मिलता, और न दुर्जन व्यक्‍ति अपनी दुर्जनता के कारण मृत्‍यु से बच सकता है।


‘जब तू उसे स्‍वतन्‍त्र करके जाने देगा तब उसकी यह स्‍वतन्‍त्रता तुझे कठिन न जान पड़े; क्‍योंकि उसने दो मजदूर के बराबर छ: वर्ष तक तेरी सेवा की है। तेरा प्रभु परमेश्‍वर तेरे सब कार्यों पर तुझे आशिष देगा।


वह अपने खरीदने वाले के साथ अपने विक्रय वर्ष से जुबली वर्ष तक गणना करेगा। उसकी मुक्‍ति का मूल्‍य वर्षों की गणना के अनुसार होगा। वह अपने स्‍वामी के साथ जितने समय तक रहा उसका मूल्‍य मजदूर के समय के समान मानकर निर्धारित किया जाएगा।


“लौट, और हिजकियाह से यह कह: ‘तेरे पूर्वज दाऊद का प्रभु परमेश्‍वर यों कहता है: मैंने तेरी प्रार्थना सुनी, और आंसू देखे। देख, मैं तेरी आयु को पन्‍द्रह वर्ष और लम्‍बा कर रहा हूं।


उसका जीवन गुलाम की तरह है, जो दिन-भर के कठोर परिश्रम के बाद संध्‍या समय बेचैनी से छाया की प्रतीक्षा करता है। मनुष्‍य का जीवन उस मजदूर के समान है, जो दिन-भर परिश्रम करता है, और संध्‍या समय अपनी मजदूरी की आशा करता है।


तू मेरे विरोध में नए-नए गवाह खड़े करता है; मेरे प्रति अपना क्रोध दुगुना कर लेता है; और मेरे ऊपर विपत्तियों की सेना धावा बोल देती है।


‘स्‍त्री से जन्‍मा मनुष्‍य अल्‍पायु होता है; उसका सारा जीवन दु:ख से भरा रहता है।


किन्‍तु अब प्रभु यों कहता है, “अनुबन्‍ध से बंधा मजदूर निश्‍चित अवधि पूर्ण हो जाने पर काम नहीं करता। तीन वर्षों की निश्‍चित अवधि में मोआब की विशाल जन-संख्‍या के बावजूद उसका वैभव समाप्‍त हो जाएगा। जो मोआबी शेष रहेंगे, उनकी संख्‍या नगण्‍य होगी, वे कमजोर राष्‍ट्र होंगे।”


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