13 यों कारीगर मजदूरी लेकर काम करते गए, और प्रभु के भवन की मरम्मत होने लगी। अन्त में मरम्मत का काम समाप्त हुआ और परमेश्वर का भवन पहले-जैसा सुदृढ़ हो गया।
13 काम की निगरानी रखने वाले व्यक्ति विश्वसनीय थे। यहोवा के मन्दिर को दुबारा बनाने का काम सफल हुआ। उन्होंने परमेश्वर के मन्दिर को जैसा वह पहले था, वैसा ही बनाया और पहले से अधिक मजबूत बनाया।
13 ये समस्त शिल्पी काम पर लग गए और उनके परिश्रम का प्रतिफल प्रगति के रूप में जाहिर हुआ. विशेष निर्देशों के अनुसार परमेश्वर का भवन पहले की तरह मजबूत हो गया.
दाऊद यह सोचता था, ‘मेरा पुत्र सुलेमान अभी किशोर है। उसे अनुभव नहीं है। जो भवन प्रभु के लिए बनाया जाएगा, उसको अत्यन्त विशाल होना चाहिए ताकि समस्त देशों में उसका नाम और भव्यता की चर्चा हो। अत: मैं भवन-निर्माण की तैयारी करूंगा।’ यह सोचकर दाऊद ने अपनी मृत्यु के पूर्व अत्यधिक मात्रा में इमारती साज-सामान एकत्र कर लिया।
राजा योआश तथा पुरोहित यहोयादा ने यह रुपया प्रभु के भवन की मरम्मत करवानेवाले अधिकारियों को सौंप दिया। अधिकारियों ने मरम्मत करनेवाले राज-मिस्त्रियों, बढ़इयों तथा लोहे और पीतल के कारीगरों को मजदूरी पर नियुक्त किया।
जब उन्होंने काम पूरा कर लिया तब वे बचा हुआ रुपया राजा योआश और पुरोहित यहोयादा के पास लाए। बचे हुए सिक्कों से प्रभु के भवन के लिए पवित्र पात्र खरीदे गए: आराधना-कार्य के पात्र, अग्नि-बलि के पात्र, सुगन्धित धूप-बलि के पात्र तथा सोना-चांदी के अन्य पात्र। जब तक पुरोहित यहोयादा जीवित रहा तब तक प्रभु के भवन में नियमित रूप से अग्नि-बलि चढ़ाई जाती रही।
जब सनबल्लत और तोबियाह ने तथा अरबी और अम्मोनी कौम के लोगों ने और अशदोद के पलिश्ती लोगों ने सुना कि यरूशलेम की शहरपनाह का मरम्मत-कार्य निरन्तर हो रहा है, उसकी दरारें भरी जा रही हैं, तो वे अत्यन्त क्रुद्ध हुए।
“तुम में से कौन लोग जीवित बचे हैं जिन्होंने इस भवन का पहले वाला भव्य रूप देखा है? अब उन्हें यह कैसा लगता है? क्या तुम्हें यह महसूस नहीं होता कि यह रूप उसके सम्मुख कुछ भी नहीं है?।