6 भाइयो और बहिनो! मान लीजिए कि मैं आप लोगों के यहाँ आकर अध्यात्म भाषाओं में बोलूँ और परमेश्वर द्वारा प्रकाशित सत्य, ज्ञान, नबूवत अथवा शिक्षा न प्रदान करूँ, तो मेरे बोलने से आप को क्या लाभ होगा?
6 हे भाईयों, यदि दूसरी भाषाओं में बोलते हुए मैं तुम्हारे पास आऊँ तो इससे तुम्हारा क्या भला होगा, जब तक कि तुम्हारे लिये मैं कोई रहस्य उद्घाटन, दिव्यज्ञान, परमेश्वर का सन्देश या कोई उपदेश न दूँ।
6 इसलिये हे भाइयों, यदि मैं तुम्हारे पास आकर अन्य अन्य भाषा में बातें करूं, और प्रकाश, या ज्ञान, या भविष्यद्वाणी, या उपदेश की बातें तुम से न कहूं, तो मुझ से तुम्हें क्या लाभ होगा?
6 इसलिये हे भाइयो, यदि मैं तुम्हारे पास आकर अन्य भाषाओं में बातें करूँ, और प्रकाश या ज्ञान या भविष्यद्वाणी या उपदेश की बातें तुम से न कहूँ, तो मुझ से तुम्हें क्या लाभ होगा?
6 अब हे भाइयो, यदि मैं तुम्हारे पास आकर अन्य भाषाओं में बोलूँ, परंतु प्रकाशन या ज्ञान या भविष्यवाणी या शिक्षा की बातें न करूँ तो तुम्हें मुझसे क्या लाभ होगा?
6 प्रिय भाई बहनो, यदि मैं तुमसे अन्य भाषाओं में बातें करूं तो मैं इसमें तुम्हारा क्या भला करूंगा यदि इसमें तुम्हारे लिए कोई प्रकाशन या ज्ञान या भविष्यवाणी या शिक्षा न हो?
हे प्रभु, तू ही मेरा बल और मेरा गढ़ है; संकट के समय मैं तेरी ही शरण में आता हूं। प्रभु, विश्व के कोने-कोने से, सब राष्ट्रों के लोग तेरे सम्मुख आएंगे, और यह कहेंगे : ‘निस्सन्देह, हमारे पूर्वजों को पैतृक अधिकार में असत्य के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला; उन्हें निस्सार वस्तुएं प्राप्त हुई जो मनुष्य को लाभ नहीं पहुंचातीं।
प्रभु की यह वाणी है, ‘देखो, मैं झूठी नबूवत, झूठे दर्शन की बातें करनेवाले नबियों के विरुद्ध हूं। मैंने इन नबियों को नहीं भेजा है, और न ही नबूवत सुनाने का दायित्व सौंपा है। ये अपने झूठ और व्यर्थ बातों से मेरे निज लोगों को पथ-भ्रष्ट करते हैं। इन झूठे नबियों से इस प्रजा को कुछ लाभ नहीं होता है;’ प्रभु की यह वाणी है।
उस समय येशु ने कहा, “पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ; क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और बुद्धिमानों से गुप्त रखा; किन्तु बच्चों पर प्रकट किया है।
इस पर येशु ने उससे कहा, “सिमोन, योना के पुत्र! तुम धन्य हो, क्योंकि किसी निरे मनुष्य ने नहीं, बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रकट किया है।
भाइयो और बहिनो! मैं आप लोगों से अनुरोध करता हूँ कि आप उन लोगों से सावधान रहें, जो फूट डालते और दूसरों के लिए पाप का कारण बनते हैं। इस प्रकार का व्यवहार उस शिक्षा से मेल नहीं खाता, जो आप को मिली है। आप ऐसे लोगों से दूर रहें।
बाँसुरी या वीणा - जैसे निर्जीव वाद्यों के विषय में भी यही बात है। यदि उनसे उत्पन्न स्वरों में कोई भेद नहीं है, तो यह कैसे पता चलेगा कि बाँसुरी या वीणा पर क्या बजाया जा रहा है?
मुझ पर बहुत-से ईश्वरीय प्रकाशन प्रकट किए गए हैं। मैं इन पर घमण्ड न करूँ, इसलिए मेरे शरीर में एक कांटा चुभा दिया गया है। मुझे शैतान का दूत मिला है, ताकि वह मुझे घूंसे मारता रहे और मैं घमण्ड न करूँ।
हम में जितने लोग परिपक्व हैं, उनका यही मनोभाव होना चाहिए और यदि किसी विषय पर आपका दृष्टिकोण भिन्न हो, तो परमेश्वर आपको इसके सम्बन्ध में ज्योति प्रदान करेगा।
लोगों को इन बातों का स्मरण दिलाते रहो और परमेश्वर को साक्षी बना कर उन से अनुरोध करो कि निरे शब्दों के विषय में वाद-विवाद न करें। इससे कोई लाभ नहीं होता, बल्कि यह सुननेवालों के विनाश का कारण बन जाता है।
पूरा धर्मग्रन्थ परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा गया है। वह शिक्षा देने के लिए, भ्रान्त धारणाओं का खण्डन करने के लिए, जीवन के सुधार के लिए और सदाचरण का प्रशिक्षण देने के लिए उपयोगी है,
यह बात विश्वसनीय है और मैं चाहता हूँ कि तुम इस पर बल देते रहो। जो लोग परमेश्वर में विश्वास कर चुके हैं, वे भले कामों में लगे रहने के लिए उत्सुक हों। यह उत्तम है और मनुष्यों के लिए लाभदायक भी।
नाना प्रकार के अनोखे सिद्धान्तों के फेर में नहीं पड़ें। उत्तम यह है कि हमारा मन भोजन से नहीं, बल्कि परमेश्वर की कृपा से बल प्राप्त करे। भोजन-सम्बन्धी निषेध-विधियों का पालन करने वालों को इन से लाभ नहीं हुआ।
जो कोई मसीह की शिक्षा की सीमा के अन्दर नहीं रहता, बल्कि उस से बाहर चला जाता है, उसे परमेश्वर प्राप्त नहीं है। जो शिक्षा की सीमा के अन्दर रहता है, उसे पिता और पुत्र, दोनों प्राप्त हैं।