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सभोपदेशक 2:26 - पवित्र बाइबल

26 यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर को प्रसन्न करता है तो परमेश्वर उसे बुद्धि, ज्ञान और आनन्द प्रदान करता है। किन्तु वह व्यक्ति जो उसे अप्रसन्न करता है, वह तो बस वस्तुओं के संचय और उन्हें ढोने का ही काम करता रहेगा। परमेश्वर बुरे व्यक्तियों से लेकर अच्छे व्यक्तियों को देता रहता है। इस प्रकार यह समग्र कर्म व्यर्थ है। यह वैसा ही है जैसे वायु को पकड़ने का प्रयत्न करना।

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Hindi Holy Bible

26 जो मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा है, उसको वह बुद्धि और ज्ञान और आनन्द देता है; परन्तु पापी को वह दु:खभरा काम ही देता है कि वह उसका देने के लिये संचय कर के ढेर लगाए जो परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा हो। यह भी व्यर्थ और वायु को पकड़ना है॥

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

26 जिस मनुष्‍य से परमेश्‍वर प्रसन्न होता है वह उसी को बुद्धि, ज्ञान और आनन्‍द प्रदान करता है। पापी मनुष्‍य से परमेश्‍वर कठोर परिश्रम कराता है। पापी मनुष्‍य परमेश्‍वर के प्रिय व्यक्‍ति के लिए धन एकत्र करता और उसको संचित करता है। अत: यह भी व्‍यर्थ है, यह मानो हवा को पकड़ना है।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

26 जो मनुष्य परमेश्‍वर की दृष्‍टि में अच्छा है, उसको वह बुद्धि और ज्ञान और आनन्द देता है; परन्तु पापी को वह दु:ख भरा काम ही देता है कि वह उसको देने के लिये संचय करके ढेर लगाए जो परमेश्‍वर की दृष्‍टि में अच्छा हो। यह भी व्यर्थ और वायु को पकड़ना है।

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नवीन हिंदी बाइबल

26 जिस मनुष्य से वह प्रसन्‍न होता है, उसे वह बुद्धि, ज्ञान और आनंद प्रदान करता है; परंतु पापी को वह धन का संचय करने और उसका ढेर लगाने का कार्य देता है कि उसे उस मनुष्य को दे जो परमेश्‍वर को प्रसन्‍न करता है। यह भी व्यर्थ और वायु को पकड़ने के समान है।

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सरल हिन्दी बाइबल

26 क्योंकि जो मनुष्य परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है, उसे परमेश्वर ने बुद्धि, ज्ञान और आनंद दिया है, मगर पापी को परमेश्वर ने इकट्ठा करने और बटोरने का काम दिया है सिर्फ इसलिये कि वह उस व्यक्ति को दे दे जो परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है. यह सब भी बेकार और हवा से झगड़ना है.

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सभोपदेशक 2:26
24 क्रॉस रेफरेंस  

तब यहोवा ने नूह से कहा, “मैंने देखा है कि इस समय के पापी लोगों में तुम्हीं एक अच्छे व्यक्ति हो। इसलिए तुम अपने परिवार को इकट्ठा करो और तुम सभी जहाज में चले जाओ।


किन्तु व्यक्ति में परमेश्वर की आत्मा बुद्धि देती है और सर्वशक्तिशाली परमेश्वर का प्राण व्यक्ति को ज्ञान देता है।


“मनुष्य के मन में विवेक को कौन रखता है, और बुद्धि को कौन समझदारी दिया करता है?


वह जीवन जिसको हम लोग जीते हैं, वह झूठी छाया भर होता है। जीवन की सारी भाग दौड़ निरर्थक होती है। हम तो बस व्यर्थ ही चिन्ताएँ पालते हैं। धन दौलत, वस्तुएँ हम जोड़ते रहते हैं, किन्तु नहीं जानते उन्हें कौन भोगेगा।


हे परमेश्वर, तू चाहता है, हम विश्वासी बनें। और मैं निर्भय हो जाऊँ। इसलिए तू मुझको सच्चे विवेक से रहस्यों की शिक्षा दे।


सज्जन अपने नाती—पोतों को धन सम्पति छोड़ता है जबकि पापी का धन धर्मियों के निमित्त संचित होता रहता है।


क्योंकि यहोवा ही बुद्धि देता है और उसके मुख से ही ज्ञान और समझदारी की बातें फूटती है।


वह जो मोटा ब्याज वसूल कर निज धन बढ़ाता है, वह तो यह धन जोड़ता है किसी ऐसे दयालु के लिये जो गरीबों पर दया करता है।


मैंने निश्चय किया कि मैं इस जीवन में जो कुछ होता है उसे जानने के लिये अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए उसका अध्ययन करूँ। मैंने जाना कि परमेश्वर ने हमें करने के लिये जो यह काम दिया है वह बहुत कठिन है।


इस पृथ्वी पर की सभी वस्तुओं पर मैंने दृष्टि डाली और देखा कि यह सब कुछ व्यर्थ है। यह वैसा ही है जैसा वायु को पकड़ना।


मैंने वह कठिन परिश्रम देखा है जिसे परमेश्वर ने हमें करने के लिये दिया है।


वे दोनों ही धर्मी थे। वे बिना किसी दोष के प्रभु के सभी आदेशों और नियमों का पालन करते थे।


अब तक मेरे नाम में तुमने कुछ नहीं माँगा है। माँगो, तुम पाओगे। ताकि तुम्हें भरपूर आनन्द हो।


किन्तु स्वर्ग से आने वाला ज्ञान सबसे पहले तो पवित्र होता है, फिर शांतिपूर्ण, सहनशील, सहज-प्रसन्न, करुणापूर्ण होता है। और उससे उत्तम कर्मों की फ़सल उपजती है। वह पक्षपात-रहित और सच्चा भी होता है।


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